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परिशिष्ट
निवेदन है कि इस परिशिष्ट के अन्तर्गत जो परिप्रेक्षका' प्रस्तुत है, उसे पाठक-मित्र पुस्तक समाप्त कर लेने के उपरान्त ही पढ़ें। कृति और पाठक के बीच वह न आये, यह वांछीय है। इस परिप्रेक्षका' में उन सारे प्रस्थानबिन्दुओं, रचनात्मक समस्याओं और मुद्दों को स्पष्ट कर दिया गया है, जिन्हें लेकर भ्रान्ति हो सकती है, प्रश्न और विवाद उठ सकते हैं।
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