________________
२९५
के कमल खिलने लगे। फिर इन्द्र अपने एरावत हस्ती पर आरूढ़ हुआ, मानो कि हिमवान पर चढ़ा हो। उसकी पालकी में बैठते समय, देव-वधुओं ने उसे अपनी बाँहों का सहारा दिया। इन्द्र की सवारी यों चली, जैसे वनाकीर्ण मेरु पर्वत चल रहा हो।
"जिस समय इन्द्र अपने सारे स्वर्ग-पटलों के साथ आ कर श्रीभगवान् को नमित हुआ, उस समय उसके जलकान्त विमान की क्रीड़ावापियों के कमलों के भीतर संगीत होने लगा। प्रत्येक संगीत के साथ, इन्द्र जैसे ही वैभव वाला एक-एक सामानिक देव अपने दिव्य रूप, वेश और ऐश्वर्य के साथ प्रकट होने लगा। उनमें से हर देव का परिवार, इन्द्र के परिवार जैसा ही महद्धिक और विस्मयकारी था। एक इन्द्र, उसके अगणित देव-मण्डल । उनका हर देव, एक और इन्द्र की महामाया से मण्डित । और जब इन्द्र ने अपने नक्षत्र माला जैसे हीरक हार को गन्धकुटी की पादभूमि में ढालते हुए, प्रभु को साष्टांग प्रणिपात किया, तो श्रीमण्डप की सारी भूमि में कोई नया ही उजाला छा गया।
देख कर दशार्णभद्र दिङमूढ़ हो रहा। नगर की समृद्धि को देख कर जैसे कोई ग्रामीण स्तम्भित रह जाता है, वही हाल दशार्णपति का हुआ। "वह धूल-माटी हो कर, धरती में समा जाना चाहने लगा। उसे लगा कि उसका तो कोई अस्तित्व ही नहीं, महासत्ता के इस राज्य में। अपनी ही निगाह में वह अपने को बिन्दु की तरह विलीन होता दीखा। "नहीं, इतना तुच्छ हो कर वह सत्ता में रहना पसन्द न करेगा। यदि हो सका, तो इन्द्र के इस वैभव से शतगुना ऐश्वर्य उपलब्ध करेगा वह, या नहीं रह जायेगा ! ...
और सहसा ही प्रथम बार राजा अपने आसपास के समवसरण की सौंदर्यप्रभा में जागा। लक्ष-कोटि इन्द्रों के ऐश्वर्य-स्वर्ग, श्रीभगवान की सेवा में यहाँ निरन्तर समर्पित हैं। राजा ने पहली बार अपने को भूल कर, केवल श्रीभगवान् की ओर निहारा। वे प्रभु कितने मदु वत्सल भाव से उसे देख रहे थे ! क्षीर समुद्र जैसा भगवान् का वह वक्षदेश। ज्ञान के उस महासूर्य में से, सारे मनोकाम्य भोग और वैभव, किरणों की तरह झड़ रहे हैं। इस इरावान् की हर लहर एक अप्सरा है। एक कमला है। एक सरस्वती है। ___ 'तू कृतार्थ हुआ राजन्, तू ने अपने होने की सीमाएँ देख लीं। अब तू अपने होने की संभावना भी देख !'
'क्या मैं प्रभु जैसा ही अमिताभ हो सकता हूँ ?'
'वही तो बनाने को हम यहाँ बैठे हैं। महावीर इस चुड़ान्त पर, शिष्य बनाने नहीं बैठा, गुरु बनाने बैठा है। हर आत्मा स्वयम् अपनी गुरु आप हो जाये। अपना भगवान् आप हो जाये। कोई अन्य स्वामी या ईश्वर अनावश्यक हो जाये। “महावीर मनुष्य के चिरकाल के अनाथत्व को मिटा देने आया है !'
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org