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________________ बन कर, तुम वैशाली के तोरण पर ताण्डव करोगी । सत्यानाश सत्यानाश, सत्य-प्रकाश सत्य-प्रकाश" ! तथास्तु, प्रियाम्बा रोहिणी देवी । जयवन्तो, जयवन्तो, त्रिकाल में जयवन्त होओ।' ___ इस कुलिश-कोमला वाणी से, पृथ्वी के धारक कुलाचल पर्वतों की चूलें थर्रा उठीं। देव, दनुज, मनुज के सारे दर्प और अहंकार धूल में लोटते दिखायी पड़े। भगवती ने प्रलय के नाशोन्मत्त समुद्र की तरंग-चूड़ा पर से, मनुष्य की जाति को उद्बोधन दिया था। भयभीत, संत्रस्त मानवों ने इस भूकम्प में आश्वासन और आधार पाने के लिये श्रीभगवान् की ओर निहारा। "और सहसा ही भगवान् अपने रक्त कमलासन से उठ कर, गन्धकुटी के पश्चिमी सोपानों पर ओझल होते दिखायी पड़े। सहस्रों घुटती आहों की मूक चीत्कार ने वातावरण को संत्रस्त कर दिया। श्रीभगवान् हमें पीठ देकर चले गये ! ... सबेरे की धर्म-पर्षदा में, वैशाली के गणपति चेटकराज आँख मीच कर जबरदस्ती सामायिक में लीन रहे। फिर भी उनकी आँख आत्म पर नहीं, बाहर के आवर्तनों पर लगी थी। वे सब देख और सुन रहे थे। श्रीभगवान् और भगवती चन्दनबाला के पुण्य-प्रकोप से उनकी तहें हिल उठी थीं। __ अपराह्न की धर्म-पर्षदा में, श्रीभगवान् का मौन अन्तहीन होता दिखायी पड़ा। ओंकार ध्वनि भी गुप्त और लुप्त हो रही। वृद्ध और जर्जर गणपति चेटकेश्वर का आसन डोल रहा है। उनका अंग-अंग थरथरा रहा है। उन्हें पल को भी चैन नहीं। श्रीभगवान् अपलक उन्हें अपने नासाग्र पर निहारते रहे। एकाएक सुनाई पड़ा : 'गणनाथ चेटकराज, सामायिक ज़बरदस्ती नहीं, वह सहज मस्ती है, स्वरूप-स्थिति है। वह प्रयास नहीं, अनायास आत्म-सहवास है। सामायिक करने से नहीं होता। भगवान् आत्मा जब प्रकट हो कर स्वयम् अपने ऊपर प्रसन्नोदय होते हैं, तब वह आपोआप होता है। सम होने पर ही सामायिक हो सकता है। जहाँ इतना विषम है, वहाँ सम कहाँ । जहाँ स्वामित्व है, वहाँ समत्व कैसे प्रकट हो। और सम नहीं, तो सामायिक कैसे सम्भव हो ?' चेटकराज के भारी और डूबे गले से आवाज़ फटी : 'मगधेश्वर श्रेणिक से अधिक विषम और कुटिल और कौन हो सकता है, भन्ते ? उसे वीतराग अर्हन्त ने समत्व के सिंहासन पर चढ़ा दिया। उसे भावी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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