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त्रासदी को प्रतिबिम्बित देखा। “सो यह सतही और उघाड़ा यथार्थवाद कारगर सिद्ध हुआ। अपनी ही आत्मकथा का सूत्र पकड़ कर गोशालक ने लोक-धर्म का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया।
क्षपणक वेशधारी मंखेश्वर ऋषि गोशालक, अपने मंख श्रमणों का भारी समुदाय ले कर आर्यावर्त के सभी प्रमुख जनपदों में विहार करने लगा । हर महानगर के सभा-चत्वर पर वह एक विशाल चित्रपट फैला कर पुरुषार्थ और नियति की व्याख्या करता दिखायी पड़ा। चित्रपट पर अंकित है एक बड़ा सारा ऊँट। ऊँट की गर्दन पर जुआ है, और जुए के अगल-बगल दो पठे बैल, जो अभी बछड़े ही हैं, लटके हैं। मानो वे ऊँट के मणि-कुण्डल हों। चित्रांकित बैलों को देख कर लगता था, कि वे छटपटा कर हाथ-पैर पीट रहे हों। और ऊँट भी घबराया हुआ लगता था। परिप्रेक्ष्य में दूर पर एक पुरुष दोनों हाथ उठा कर त्राहिमाम् की चीख-पुकार उठाता दिखायी पड़ रहा था।
गोशालक चित्रपट को ऊँचा उठा कर कहता सुनाई पड़ता :
'अरे ओ आर्यावर्त के लोगो, कृषिकारो, कम्मकरो, कुम्भकारो, कम्मारो, रथकारो, धनुषकारो, अनेक श्रमों और शिल्पों में जुते हुए लोगो, क्यों व्यर्थ में पसीना बहा रहे हो। मेरी बात सुनो। "नत्थि पुरिस्कारे । नास्ति पुरुषकारं। अरे मेरे प्यारे जनो, कर्म-पुरुषार्थ आदि सब बकवास है। जो होना है, वही होगा, तो फिर खटने-खपने से क्या लाभ । मैं हूँ मंक ऋषि । नैमिषारण्य के ब्राह्मणगण मुझे सर्व-देव-देवेश्वर मंख महर्षि कहते हैं। क्यों कि उनके कर्मवाद को मैं व्यर्थ प्रमाणित कर चुका हूँ। ___ 'पहले उन सयानों की सलाह मान कर, मैंने दो जून की रोटी पाने तक के लिये क्या-क्या नहीं किया। नीच से नीचतम कर्म भी किये। जन-जन के द्वार पर मैं श्वान की तरह डोला, भंडिहाई की, घटियाई की, क्या-क्या नहीं किया। पर मुझे सब जगह से दुत्कार कर, मार-पीट कर निकाल दिया गया। __'तब मैंने सोचा, धन ही लोक में सर्वशक्तिमान देवता है। सो मैं धन कमाने की धुन में कृषि-कर्म की ओर लपका। मैंने अपनी औषधि-मंजूषा की अमूल्य औषधियाँ कौड़ी मोल बेंच कर, दो पढें बैल खरीदे। उन बैलों को ले कर मैं जोतने को कोई पडत भूमि खोज रहा था। तभी एक ऊँट कहीं से दौड़ता आया। देख रहे हो न चित्रपट में यह भीम काय ऊँट। इसने एक ही झपट्टे में मेरे प्यारे बैलों को मुझ से छीन लिया, और उन्हें अपने जुए पर टाँग लिया। सो वे दोनों बैल, उस ऊंट से जुए के दोनों ओर उसके मणि-कुण्डलों की तरह लटक गये। और ऊँट जंगल में दूर-दूर भाग निकला। और मैं अनेक प्रकार से आर्त्त विलाप करता, अपने भाग्य को कोसता, व्यर्थ ही चीखता-चिल्लाता .
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