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साक्षात्कार हो सकेगा। अनायास ही महावीर की प्राथमिक प्रतिज्ञाएँ यहाँ मूर्त और परिपूर्त होती दिखायी पड़ेंगी। प्रथम अध्याय में ही, महावीर के कंवल्य-विस्फोट से स्वर्गों तक में प्रलय और नवोदय होता है। मृत्युंजयी महावीर के प्राकट्य के साथ देवों के तथाकथित 'अमरत्व' का भ्रमभंग हो जाता है। भौतिक ऐश्वर्य पर आत्मिक ऐश्वर्य की विजय दि सम्वेदित होती है। दूसरे अध्याय में तीर्थंकर का समवसरण इस महिमा का एक प्रतीकात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। तीसरे, चौथे, पांचवें अध्यायों में धर्म-अध्यात्म और ज्ञान-विज्ञान की साम्प्रदायिक सीमाएँ टूटती हैं। अखण्ड कंवल्य-सूर्य के सर्वप्रकाशी आलोक में ब्राह्मण और श्रमण के बीच की दीवार ढह जाती है। अनेकान्त के मानस्तम्भ महावीर के मीतर ज्ञान की सभी धाराओं का समन्वय और समावेश अनायास होता है। उठने वाले हर अन्तिम प्रश्न का अचूक उत्तर मिलता है। द्वंद्वातीत विश्वपुरुष के भीतर सारे द्वंद्वों को स्वीकृति और समाहार एक साथ प्राप्त होता है। इस मौलिक अतिक्रान्ति से बड़ी कौन-सी कान्ति हो सकती है ? ___ श्री भगवान के निकट जब चन्दनबाला आती हैं, तो सारी स्थापित और रूढ़ धार्मिक तथा नैतिक मर्यादाएँ टूटती हैं। स्त्री की महिमा और सामर्थ्य का एक नया ध्रुव स्थापित होता है। ब्राह्मण और बौद्ध दोनों ही ने नारी के लिये संन्यास और मोक्ष वर्जित मान रवखा था। महावीर ने उस वर्जना को तोड़ कर, नारी को बेहिचक संन्यास और मोक्ष का अधिकार दिया, और महासती चन्दनबाला को अपने समकक्ष ही भगवती जगन्माता के आसन पर प्रतिष्ठित किया। ___ 'अहम् के वीरानों में तथा अधियारी खोह के पार' शीर्षक अध्यायों में, महावीर श्रेणिक की चरम भौतिक प्रमुता को अपनी आत्मिक प्रभुता, प्रीति
और सर्वशवितमत्ता से लीला मात्र में पराजित कर देते हैं। जागतिक सत्ता की विकृत और सड़ी हुई जड़ों का उन्मूलन होता है, उसकी बुनियादों में ही सुरंग लग जाती है। आज जो एकराट् राज्यत्व का अन्त हुआ है, उसके मूल में महावीर की वह अतिक्रान्ति तात्त्विक और प्रक्रियात्मक रूप से, ढाई हजार वर्षों के आर-पार सक्रिय रही है। ___महावीर की इसी अतिक्रान्ति से आलोकित और उन्मेषित हो कर, श्रेणिक-पुत्र मेघकुमार राज्यत्व का बुनियादी तौर पर मंजन करता है, वह सम्राटत्त्व और सिंहासन को ठुकरा कर, महावीर की समूली क्रान्ति का श्रमण-सैनिक हो जाता है। इसी प्रकार श्रेणिक के दो अन्य राजपुत्र पारिषण
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