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________________ १७ ब्यौरा, और बहुत कम ऐसी घटनाएँ जिन्हें ऐतिहासिक कहा जा सके। शेष में तो महावीर का जैन कवि-पुराणकारों द्वारा संरचित वह वैश्विक व्यक्तित्व है, जो हर ऐतिहासिकता से अधिक जीवन्त, ज्वलन्त सच्चा और तर्कातीत है । मैंने मूलतः कवि-दृष्टाओं द्वारा साक्षात्कृत प्रभु के उस उपलब्ध व्यक्तित्व को ही अपना मौलिक आधार-स्रोत बनाया है, जो लोक-मानस में आज तक अक्षुण्ण जीवन्त रह सका है । जो शिलालेखों से अधिक, चिरन्तन् मनुष्य की सतत् वर्तमान रक्त-शिराओं में ही अधिक सचाई के साथ उत्कीर्णित है । जहाँ तक घटनाओं का सम्बन्ध है, वे ऐतिहासिक से अधिक पौराणिक, farara और दन्त कथात्मक हैं । वे जिनेश्वरी प्रज्ञा और परम्परा के कवियों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य हैं । उनमें कथानक, नाम और सम्बन्धों को ले कर, विभिन्न ग्रंथों में किंचित् भिन्नता भी पायी जाती है । जैसे दिगम्बर कथा में चन्दनबाला महावीर की सब से छोटी मौसी के रूप में आलेखित हैं, जब कि श्वेताम्बर कथा में वे चम्पा की राजकुमारी चन्द्र भद्रा - शीलचन्दना हैं | चम्पा की महारानी पद्मावती महावीर की मोसी हैं । और उनकी बेटी शीलचन्दन उनकी पुत्री हो कर, महावीर की मौसेरी बहन हैं । मैंने पिछले दो खण्डों में इन दोनों चन्दनाओं को यथा स्थान स्वीकार कर, उनका यथेष्ट उपयोग कर लिया है । ऐसे और भी कथा-भेद और सम्बन्ध-भेद पाये जाते हैं, जिनमें से मैंने सृजनात्मक सम्भावना के अनुरूप चुनाव कर लिया है । जब पिछले कवियों को यह छूट रही, कि उन्होंने अपनी काव्यात्मक जरूरत और निजी रुचि के अनुसार कथानकों और सम्बन्धों का नया तारतम्य बैठा लिया, तो आज के कवि को भी वह अधिकार तो रचनाधर्मिता के नाते अनायास ही प्राप्त है । प्रस्तुत खण्ड में ख़ास कर अनवद्या प्रियदर्शना और जमालि के कथानक और पात्रों में, ऐसा ही एक परिवर्तन करने की छूट मैंने ली है । दिगम्बर ग्रंथों में तो यह कथानक है ही नहीं, बल्कि महावीर जीवन की कोई घटनाप्रधान श्रृंखलित कथा ही वहाँ नहीं है । श्वेताम्बर आगमों में यह कथानक और ये दोनों पात्र एक सार्थक और रोचक कथा उत्पन्न करते हैं । उनके अनुसार प्रियदर्शना महावीर की बेटी थी, और जमालि उनकी बहन सुदर्शना का पुत्र होने से उनका भांजा था । उस काल के क्षत्रिय रिवाज के अनुसार मामा- बुआ के ये भाई-बहन विवाह - सूत्र में बँध गये थे । महावीर जब तीर्थंकर हो कर पहली बार क्षत्रिय कुण्डपुर आये, तब जमालि और प्रियदर्शना ने उनके निकट एक हज़ार क्षत्राणियों और पाँच सौ क्षत्रियों सहित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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