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________________ है । और भावी कल्की अवतार की सांकेतिक सूचना पर ग्रंथ थम जाता है। __ लेकिन श्री भगवान का विश्वव्यापी धर्मचक्र प्रवर्तन अभी जारी है, और अन्तिम चतुर्थ खण्ड में वह अनुत्तर योगी अतिमानव के चरम सीमोल्लंघन पर समाप्त होगा । जैनों के उक्त ब्रह्माण्डीय लोकशास्त्र की पटभूमि पर ही, उसकी 'कॉस्मिक इमेज' के तारतम्य में ही, तीर्थंकर के विराटत्व का समीचीन आलेखन सम्भव है । और समकालीन इतिहास-भूगोल के सार्वभौमिक विस्तार में छोरों तक भ्रमण-विहार और परिव्राजन द्वारा ही, उवत विराटत्व को प्रतीकायित किया जा सकता है । इसी अनिवार्यता में से अचानक चौथा खण्ड सामने आ खड़ा हुआ । केवल जनों को ही नहीं, लगमग सभी प्रमुख भारतीय द्रष्टाओं की देशकाल की अवधारणा प्रकारांतर से एक जैसी ही है। कारण, वह साक्षात्कृत सत्य और तथ्य है, कोई आनुमानिक-तार्किक चिन्तन नहीं है। भारतीय ज्ञानियों की दृष्टि में देश और काल दोनों, अखण्ड भी हैं, और खण्ड भी हैं। क्यों कि यही वस्तुस्थिति है . यही सत्ता का अनकान्तिक स्वरूप है। जैसे सत्ता, अखण्ड महासत्ता भी है, और खण्ड अवान्तर सत्ता भी। उसी की तरतमता में देश-काल मी अखण्ड, और अवान्तर या खण्ड एक साथ हैं। उससे भी परे ज्ञायक चेतना की एक ऐसी परात्पर अवस्था होती है, जो देश-काल से अतीत हो कर भी, निरन्तर देश-काल की ज्ञाता-दृष्टा और एकाग्र भोक्ता भी होती है। जैन अध्यात्म, दर्शन और पुराणों में मी, देश-काल के इन दोनों युगपत् पहलुओं का वर्णन समान रूप से मिलता है। जहाँ एक ओर महासत्ता और अनन्तकाल का निरूपण है, अनाहत पुरुष अर्हन्त और अनन्त पुरुष सिद्ध का साक्षात्कार है, वहीं उस स्थिति तक पहुंचने के पूर्व की जन्मान्तर व्यापी जीवन-यात्रा को भी अत्यन्त विशद् और तथ्यात्मक 'डोटेल' के साथ चित्रित किया गया है। देश-काल में जो व्यक्ति, घटना, भाव, सम्बन्ध और सौन्दर्य की लीला है, वास्तविक जीवन के जो अस्तित्वगत अनिवार्य संत्रास हैं, उनका भी जैन पुराणों में बड़ी बारीकी से आलेखन हुआ है। महावीर वास्तववादी और क्रियावादी थे। वे मायावादी और शून्यवादी नहीं थे। इस कारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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