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वाराणसी का चूलनी-पिता काशी जनपद का सुरादेव, आलभिका निवासी चुल्लशतक, पांचाल देशीय काम्पिल्यपुर का कुंड कौलिक, पोलासपुर का सद्दालपुत्र, राजगृही का महाशतक, श्रावस्ती का नन्दिनी-पिता और साकेतवासी सालिही पिता।
__ ये सारे ही गृहपति, आनन्द गृहपति की तरह ही विपुल सम्पत्ति के स्वामी, जगत-विख्यात सार्थवाह थे । सभी रूढ़ि और परम्परानुसार अपने व्रत और त्याग की सूचियाँ बना कर श्री भगवान के पास श्रावक-धर्म में दीक्षित होने आये थे। पर भगवान ने उनकी तमाम त्याग-सूचियों को छेक दिया !
इन सभी की आत्माएँ, हिरण्य-घट में बन्दी होते हुए भी, मुमुक्षा से उत्कण्ठित थीं । सम्वेद से भावित थीं। प्रभु से प्रतिबोध पा कर, ये सभी बाह्याचार से ऊपर उठ कर, सामायिक में उत्क्रान्त हुए। इनकी निश्चल समाधि से भयभीत हो कर, अनेक सुर और असुर शक्तियों ने ईर्ष्यावश इनके कायोत्सर्ग को भंग करना चाहा। इन्हें ध्यान के भीतर भीषण यातनाओं और परीक्षाओं में डाला गया। पर ये अपनी धुरी से विचलित न किये जा सके।
इनकी सारी सम्पत्ति लोक को अर्पित हो गयी। अपने-अपने प्रदेशों में ये प्रजापति की तरह पूजे गये।
सामायिक-क्रान्ति की राह महावीर ने उस काल उस मुहूर्त में, वणिक-सभ्यता के सुदृढ़ दुर्ग की बुनियादों में सम्यक्-ज्ञान की सुरंगें लगा दी · · ·!
· · ·आज एक-एक कर वे बीज विस्फोटित हो रहे हैं। समयसार आत्मा हमारे समय के अश्व पर आरूढ़ है। उसने इतिहास की धारा को सपाट से उठा कर, ऊपर को मोड़ दिया है । और सपाट के सारे खेल लड़खड़ाते दीख रहें हैं।
इतिहास शीर्षासन करने की मुद्रा में है।
· · · क्या कल्की अवतार होने को है ?
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