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'श्री चरणों में शरणागत हूँ, भगवन्त । अन्तर्यामी मेरे तन-मन की सारी वेदनाएं जानते हैं । मुझे इस पीड़ा से उबार लें, भगवन् !'
चुप्पी अनाहत व्याप्त रही। आनन्द गृहपति फिर अधीर हो कर बोला :
'मैं प्रभु का व्रती श्रावक होना चाहता हूँ। मुझे पांच अणुव्रत और सात शिक्षा-व्रतों में दीक्षित करें, स्वामिन् ।'
भगवान चुप रहे। आनन्द का मन इस कठोर निरुत्तरता से व्यथित हो उठा । प्राणि मात्र के अकारण बन्धु भगवान की ओर से उसे कोई प्रतिसाद न मिला ? बह चुप न रह सका। वह अर्हत् का उपासक होने के लिये उतावला हो उठा । उसने निवेदन किया :
'श्रीभगवान की साक्षी में, मैं इस प्रकार श्रावक के पांच अणुब्रत धारण करता हूँ :
___ 'मैं आज से सर्व प्रकार की स्थूल हिंसा का त्याग करता हूँ। अपने जाने किसी जीव को कष्ट न पहुँचाऊँगा । किसी को बाँधंगा नहीं, किसी का वध नहीं करूँगा। सामर्थ्य से अधिक किसी पर भार न डालूंगा। शक्ति से अधिक किसी से काम न कराऊंगा । किसी का शोषण न करूँगा। किसी का भोजन-पान बन्द न करूँगा । इस प्रकार मैं अहिंसा अणुव्रत धारण करता हूँ, भन्ते प्रभु ।
_ 'स्वार्थ साधन के लिये स्थूल झूठ नहीं बोलूंगा । कपटाचरण और मायाचार न करूँगा। बिन सोचे किसी पर आरोप न लगाऊँगा। किसी की गुप्त बात प्रकाशित न करूंगा । स्त्री की गोपनता को प्रकाशित न करूंगा। खोटी सलाह न दूंगा, खोटे लेख न लिखूगा, खोटी गवाही न दूंगा । इस प्रकार मैं सत्य अणुव्रत धारण करता हूँ, प्रभु ।
'मैं सर्व प्रकार की स्थूल चोरी का त्याग करता हूँ। चोरी का माल नहीं रक्खंगा। चोर-बाज़ारी न करूँगा। खोटे तौल-माप नहीं रक्खंगा। मिलावट करके बनावटी वस्तु को मूल वस्तु के स्थान पर नहीं बेचूंगा । इस प्रकार मैं अस्तेय अणुव्रत ग्रहण करता हूँ, भन्ते भगवान् ।
'स्व-पत्नी में ही सन्तोष धारण करूँगा । पर स्त्री की अभिलाषा न करूँगा। वेश्यागमन न करूंगा। कुमारी या विधवा से संसर्ग न करूंगा। परकीयाओं के संग श्रृंगार-चेष्टा न करूंगा। कामभोग की तीव्र अभिलाषा न करूँगा। इस प्रकार मैं आज से ब्रह्मचर्य अणुव्रत में प्रतिबद्ध हुआ, भगवन् ।
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