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घण्ड प्रतापी योद्धा प्रद्योतराज, अपनी रूप-लिप्सा के वशीभूत हो कर, पालतू पशु-सा खामोश हो गया । कौशाम्बी के चारों ओर स्थायी छावनियाँ डाल कर वह वहीं निवास करने लगा । और मृगावती को पाने की प्रतीक्षा में, महीनों पर महीने धीर भाव से गुज़ारने लगा।
शूरातन और सुन्दरी-विलास ही प्रद्योत की एक मात्र संयुक्त वासना थी। वह सपनों में भी कौशाम्बी के दुर्ग की दीवारें चुनता रहता था। मानो उनकी नीवों में वह अपने ही को डाल रहा था । क्योंकि यह दुर्ग उसकी रूपरानी और अवन्ती की भावी पट्टमहिषी के लिये चुना जा रहा था। महावीर की मौसी और मृगावती की छोटी बहन शिंवादेवी प्रद्योत की पटरानी थी। उन पर उस समय क्या बीत रही होगी, कौन जान सकता है ?
इधर प्राचीर पर प्राचीर उठ रहे थे, उधर मृगावती ने चण्ड प्रद्योत को कहलवाया कि अब वे कौशाम्बी के भण्डारों को धन-धान्य और वस्तु-सम्पदा से भर दें, ताकि बाला राजा उदयन के राज्य को सम्पूर्ण सुरक्षित कर वे निश्चिन्त भाव से चण्ड प्रद्योत के पास चली आयें। चित्रपट में अंकित सुन्दरी की मोहमाया में दिन-रात आविष्ट प्रद्योतराज, उसकी हर आज्ञा का पालन अचूक रूप से करने लगा।
इस प्रक्रिया में चार-पाँच वर्ष बात की बात में निकल गये । इस बीच महारानी मृगावती ने कौशाम्बी के परकोटों को सहस्रों सैन्यों और शस्त्रास्त्रों से परिबद्ध कर दिया। अब युवराज उदयन कुमार पच्चीस वर्ष का प्रचण्ड योद्धा और भुवन-मोहन राजपुरुष हो गया था। उसने अपनी माँ से सारा वृत्तान्त जान लिया था। सो वह भी एक मायावी विद्याधर की तरह चण्ड प्रद्योत को भरमाये रखने लगा। अपने अन्तहीन साहसिक भ्रमणों और पराक्रमों द्वारा वह जो देशान्तरों की सुन्दरियों को जीत लाता था, उनका एक विशाल अन्तःपुर उसने निर्माण करवाया था । और वह प्रद्योत को सदा यह प्रलोभन देता रहता था, कि उसी को भेंट करने के लिये यह सैकड़ों सुन्दरियों का अन्तःपुर वह बना रहा है। उसने अपनी कुंजरविमोहिनी वीणा से सम्मोहित कर जो कई दुर्लभ हस्ति-रत्न विन्ध्यारण्य से प्राप्त किये थे, उन्हें वह चण्ड प्रद्योत को भेंट-स्वरूप भेजता रहता था ।
वह कभी-कभी अवन्तीनाथ से मिलने उज्जयिनी भी जाता रहता था। उसने उनके साथ एक गुप्त सन्धि कर ली थी, कि अवन्ती और वत्स देश मिल कर एक अजेय महाराज्य स्थापित करेंगे, और उसके एकछत्र सम्राट होंगे अवन्तीनाथ चण्ड प्रद्योत । उदयन को राज्य में रुचि नहीं थी । यह सुरक्षित महाराज्य बन
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