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________________ 'तेरा दर्शन सम्यक् है, मेघकुमार, इसी से ज्ञान और चारित्र्य भी मौलिक और विलक्षण है । तू एक आत्यन्तिक व्यक्ति है। निराला है तेरा भाव, तेरी प्रज्ञा । बोल क्या चाहता है ?' 'उस पूर्णत्व में अपने को साक्षात् करना चाहता हूँ। उसमें जीना चाहता हूँ, यहाँ पृथ्वी पर, जैसे मेरे प्रभु उसे जी रहे हैं।' 'तेरा स्वप्न सिद्ध होगा, देवानप्रिय !' 'देह-सिद्धि पा सकूँगा ? अजर-अमर देह को उपलब्ध हो सकूँगा?' 'तेरी माँग बहुत स्वल्प, बहुत सीमित, बहुत छोटी है, सौम्य। तू सीमा में रहना चाहता है, भूमा में आने से भयभीत है । कि कहीं खो न जाऊँ ! मेरी अस्मिता का क्या होगा? यही न, मेघ ?' 'मेरे अणु-अणु के स्वामी, आश्चर्य ! मैं आरपार समूचा प्रभु की हथेली पर हूँ ।' ___'अपनी अभीप्सा को अक्षुण्ण रहने दे । इस देहकाम की तीव्रता में से ही, एक दिन तू देह से उत्तीर्ण आत्मकाम हो रहेगा । विकल्प त्याग कर, अपनी उत्कंठा की अग्नि को सारे लोकाकाश में छा जाने दे । जो होना चाहता है, उसी पर दृष्टि अटल रख । और अन्ततः आपोआप वह हो जायेगा, जो तू मूलतः है, जो तू होना चाहता है । तब देह और देही के रहसिल योग का गोपन अनुभव तू पा जायेगा। सारे प्रश्न तब निर्वाण पा जायेंगे । उस पूर्णत्व को तू जियेगा, सदेह, अनेक देहों में- और अन्तिम देह तक । . . . ‘आकार और निराकार में अन्तत: भेद नहीं, मेघकुमार । केवल दो अलगअलग वातायन। सूक्ष्मतम से स्थूलतम तक एक सातत्य प्रत्यक्ष देखेगा। स्वभाव में स्थित हो, और जान कि तू क्या है, तेरी चाह क्या है, और उसका उत्तर क्या है ?' मेघकुमार को लगा कि तर्क, प्रश्न, संकल्प के किनारे हाथ से छूट रहे हैं। शरीर खोल की तरह उतरा जा रहा है । भीतर से एक के बाद एकः, नव्य से नव्यतर शरीर प्रकट हो रहे हैं । अनन्त, असंख्य शरीर। और हठात् एक देह, एक पर्याय की मोह-ग्रंथि विगलित हो गयी। वह श्रीचरणों में आपाद-शीश विनत हो गया। _ 'मैं समर्पित हूँ, हे अनन्त देह भगवान । सहस्राक्ष, सहस्रबाहु, सहस्रपाद विराट् पुरुष को साक्षात् कर रहा हूँ।' 'तथास्तु, देवानुप्रिय !' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003847
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size7 MB
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