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________________ ५८ है । उसकी इच्छा पूरी हो ! ... · · 'नागसेन के द्वार पर भिक्षुक ने पाणि-पात्र में यत्किंचित् आहार ग्रहण कर हाथ खींच लिये । दिव्य वाजिन ध्वनियों के साथ गृहपति के आंगन में वसुधाराएं बरसने लगीं । मंगल प्रातिहार्यों से सारा ग्राम जगमगा उठा । : 'भिक्षुक जा चुका है। जाने कितनी माँ-बहनों की आँसू भरी आँखें, उसकी दूर लोटती पीठ की आरती उतार रही हैं। ___ श्वेताम्बी नगरी की सीमा से गुजर रहा हूँ। वहां का राजा प्रदेशी विपुल वैभव के साथ वन्दना को आया है। क्षत्रिय को सम्मुख पा कर, क्षण भर थम गया । राजा बोला : 'वैशाली के राजवंशी श्रमण हमारा आतिथ्य स्वीकारें ।' 'वर्द्धमान निवंश हो गया, राजन् ।' 'प्रतिबोध चाहता हूँ, भन्ते ।' 'अपने वैभव को सर्वजन का भोग बना दे, क्षत्रिय ! यही लोकपाल विष्णु के योग्य है। ... तेन त्यक्तेन भुंजीथः ।' 'प्रतिबुद्ध हुआ, देवार्य ।' मैं तो चुप ही रहता हूँ । कोई उत्तर देता नहीं। पर देखता हूँ, मौन स्वतः ही मुखर हो कर, अन्तिम शब्द कह देता है । . . . • • “ग्रामानुग्राम विहार करता सुरभिपुर के समीप आया हूँ । हठात् अपने को गंगा के तट पर खड़ा पाया। महानदी गंगा । देवात्मा हिमालय की दुहिता। इसके तटवर्ती तपोवनों में वेद और उपनिषदों की मंत्रवाणी उच्चरित हुई । आर्यों का ज्ञानसूर्य इसकी लहरों पर बालक की तरह खेला। इसने अपने ऋषि-पुत्रों को चैतन्य के चूड़ान्तों पर आरोहण करते देखा । पर इसने अपने विश्वामित्रों और काश्यपों को वहां से उतर कर कामिनी के उरोजों पर आत्मार्पण करते भी देखा । काम और आत्मकाम की संधि इसके हिल्लोलित वक्षोजों पर हस्ताक्षरित हुई। पार्वती योग के सिद्धाचल से योगीश्वर शंकर को फिर एक बार अपनी गोद में लौटा लाई। आर्य द्रष्टाओं से अधिक सत्ता की अनैकान्तिनी लीला के रहस्य को किसने थाहा है ? · · ·और इसी गंगा के गर्भ का योनिभेद कर आदिनाथ वृषभदेव इसके उत्स को पार कर गये। स्वयम् हिमाचल हो कर वे कैलाश की चूड़ा पर अविचल समाधिस्थ खड़े हो गये। और उनके चरण-युगल से अपराजेय श्रमण-धर्म की जिनेश्वरी धारा प्रवाहित हुई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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