________________
४३
'कैसे अपने को जानें, भन्ने । मैं तो अज्ञानी हूँ ।'
'केवल अपनी ओर देख, वत्स । केवल अपने में रह । तेरी शरण तू स्वयम् ही है । अन्य कोई तेरी शरण नहीं, तेग स्वामी नहीं । तूही अपना स्वामी है ।'
'स्वामी . . . !' 'अप्प दीपो भव। अपना दीपक आप ही हो जा रे · · · !'
ग्वाला भावित हो कर गाँव की ओर दौड़ा गया । वह ग्रामजनों को एकत्रित कर हर्षावग में अपनी आप बीती मुनाने लगा । बोला कि-'अहो, सुनो रे सब शुभ वार्ता ! हमारे गाँव के भाग खुल गये । हमारी सीमा पर एक त्रिकालवेत्ता देवार्य आये हैं । तन-मन की सब जानते हैं । विपल मात्र में जी का सारा दुःख-क्लेश हर लेते हैं ।' . ग्रामजन सुन कर गद्गद् हो गये । पूजा-सामग्रियों के थाल सजाये मेरे पास दौड़े आये । मेरे सामने अक्षत-फूलों के ढेर लग गये ।
'भन्ते श्रमण, हमारे ग्राम में भी आपके समान ही एक सिद्ध-पुरुष रहता है । वह अगम-निगम के भेद जानता है । जो, हुआ और जो होने वाला है, सब बता देता है । तन्तर, मन्तर, जन्तर सब विद्याओं का वह पारगामी
'अच्छंदक · · · !' 'वही स्वामी, वही । आप तो लोकालोक की सब जानते हैं ! . . . अच्छंदक ही हमारे गाँव का गुरु है । हम उसे अच्छा-बाबा कहते हैं ।'! 'वह तुम्हारा अच्छा-बाबा, सच्चा-बाबा भी है क्या ?'
'सब सच-सच बता देता है, भन्ते । और सारे दुःख दूर करने के उपाय भी बता देता है ।'
'तुम्हारे दुःख दूर हो गये, आयुष्यमान् ?' गांव का मुखिया बोला :
'अब भन्ते, वह तो ऐसा है कि, जैसा जजमान, जैसा उसका दान, वैसा उसका व्राण · · ।'
'पाषण्ड · · पाषण्ड · पाषण्ड । अज्ञान · · 'अज्ञान · · 'अज्ञान · · । केवल तुम स्वयम् ही कर सकते हो अपना त्राण । और सब प्रवंचना और कुज्ञान । पाओ अपने आप का ज्ञान । आपको ध्याओ, आपको पूजो, आपको प्रेम करो । आप ही बनो अपने भगवान । आपो आप पा जाओगे सब दुःखों से निर्वाण ।'
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org