________________
'अपुल्वो · · अपुव्वो निगंठनातपुत्तो । अपूर्व है : अपूर्व है यह निग्रंथज्ञातपुत्र । संसार और निर्वाण दोनों में यह जिनेन्द्र समान रूप से विचरण करेगा. . .!'
उत्पल के मुख से निकला :
'यह तो कुछ अपूर्व और असम्भव सुन रहा हूँ, प्रभु । किसी अर्हत् ने पहले ऐसा तो नहीं कहा ।'
औचक ही लौट कर मैं मन्दिर में प्रवेश कर गया। दूर-दूर जाती सहस्रों कण्ठों की समवेत जय ध्वनियाँ क्षितिज पर मंडलाती सुनाई पड़ी।
मन्दिर का प्रांगण निर्जन हो जाने पर, मैं वहाँ के एक सप्पच्छद वृक्ष तले की शिला पर आकर ध्यानस्थ हो गया। · · दूरी में देखा कि गाँव में भारी उत्सव मच गया है। अनेक ग्राम्य वाजिन-ध्वनियों के बीच नर-नारीजन रंगबिरंगे वस्त्राभूषणों में सज कर नाच-गान कर रहे हैं। कई पीढ़ियों के बाद समारोह पूर्वक फिर 'वर्द्धमान' ग्राम का नवजन्मोत्सव हो रहा है । . .
आसपास के सारे सन्निवेश के लिए विविध व्यंजनी रसोई का पाक हुआ है। क्षीरान्न के केशर-मेवों की सुगन्ध ने मेरी देह को व्याप लिया। उस समस्त भोजन का आपोआप जैसे मुझ में आहरण हो गया। • दिन चढ़ने पर गाजेबाजे के साथ ग्राम-लक्ष्मियाँ पक्वानों का एक विशाल स्वर्ण थाल सजाये यहाँ आई। उसे मेरे सम्मख नैवेद्य कर लोकजनों ने मुझसे अनुनय की : _ 'भो स्वामिन्, आहार-जल शुद्ध है, शुद्ध है, शुद्ध है । ग्रहण कर हमें कृतार्थ करें । . . .' ___ उत्तिष्ठ हो कर पाणि-पात्र मे एक ग्रास ले मैंने हाथ खींच लिये । - फिर हाथ जोड़ कर आत्मस्थ हो गया। ग्रामजन आनन्द-विभोर हो प्रसाद खाते हुए नाचगान के साथ हुल-ध्वनियाँ और शंखनाद करने लगे· ·। सब की ओर से प्रेषित एक उज्ज्वल वेशिनी कुमारिका ने आकर अनुरोध किया :
'भन्ते देवार्य, यह वर्षायोग यहीं सम्पन्न करके, प्रभु इस ग्राम को नित्य । वर्द्धमान करें।
मेरे निश्चेष्ट मौन से वे स्वीकृति का बोध पा कर गद्गद् हो गये। फिर मेरे मनोभाव से इंगित पा कर वे मन्दिर में गये। देवासन पर प्रतिष्ठित वृषभमूर्ति में उन्होंने सर्व-संरक्षक धर्म का दर्शन पाया। उत्पल शर्मा ने नन्हें बालकबालाओं द्वारा उसका पूजन करवाया । और मन्दिर की छत में से पहली बार शूलपाणि का मृदु वत्सल कण्ठ स्वर सुनाई पड़ा :
'मित्ती मे सव्व भुदेषु · · · !'
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org