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जानता हूँ, उसमें निर्बन्ध, निर्द्वन्द्व विचरता हूँ । विधि-निषेध के सारे फाटक पीछे छूट गये । एक मुक्त आनन्द को सतत अपने साथ चलते अनुभव करता हूँ ।
पूज्यपाद विद्यानन्द स्वामी भी अचानक उसी धारा में मुझे मिल गये । और महावीर के इस प्रेमयोगी और कर्मयोगी प्रतिनिधि ने मुक्तानन्द से प्राप्त मेरे अमृत को 'अनुत्तर योगी' में रूपायित करने का अचूक रसायन प्रस्तुत कर दिया । यह एक अद्भुत संयोग है, और इस पर मैं आश्चर्य से स्तब्ध हूँ ।"
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मंखलि गोशाल, महावीर की जीवन- कथा में एक महत्त्वपूर्ण पात्र है । महावीर के समकालीन तीर्थकों में वह आजीविक सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित है। जैन और बौद्ध दर्शनों के अतिरिक्त उस काल के दर्शनों में केवल आजीविक परम्परा ही कुछ अधिक समय तक टिकी रहने का प्रमाण मिलता है। भारतीय और विदेशी शोध पण्डितों ने तत्कालीन दार्शनिकों में गोशालक को भी पर्याप्त महत्त्व दिया है। इसके विपरीत जैनों की महावीर - कथा में गोशालक भगवान के तपस्याकाल के एक मूढ़ शरणागत शिष्य के रूप में सामने आता है । वह दीन दयनीय, आत्म-हीनता से पीड़ित, तृष्णार्त, लोभी, भोजन- भट्ट और एक अकारण शरारती, कौतुकी वानर के रूप में चित्रित है । रचना की दृष्टि से, आगमों में उपलब्ध उसका यह विडम्बनकारी रूप ही मुझे अधिक उपयुक्त प्रतीत हुआ । इस रूप में वह काल की अधोगामिनी धारा ( अवसर्पिणी काल ) के एक सचोट व्यंग्य-विद्रूप - कार विदूषक के रूप में उपलब्ध हो जाता है । वह अस्तित्व के सारे विपर्ययों, व्यंग्यों, वैषम्यों को अपनी वाचालता द्वारा नग्न करता है। सारे पाखंडों का पर्दाफाश करता है । यहाँ तक कि वह स्वयम् अपना ही मजाक उड़ा कर, सारे जगत-जीवन पर तीव्र व्यंग्य का अट्टाहास करता है । अपने काल के और अस्तित्व के तमाम विपर्ययों का वह एक तीव्र निन्दक और कटु आलोचक है । उसके इस विदूषक स्वरूप से मेरी कथा को, अन्यों से सर्वथा भिन्न एक विलक्षण पात्र प्राप्त हो जाता है।
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इसी से बिना किसी शोध-विवाद की उलझन में पड़े, विशुद्ध सर्जन की दृष्टि से संसार जीवन के एक मूर्तिमान व्यंग्य - विद्रूप के नाते मैंने उसका उपयोग कर लिया है। महावीर उसे अपने साथ रहने देते हैं, यही अपने आप में उसको एक निगूढ़ सार्थकता प्रदान करता है । मानों कि अपने एक प्रतितीर्थक या विरोधी के रूप में भगवान उसे अपने लिये एक अनिवार्य संगी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं । वह भगवान से ही तेजोलेश्या सिद्धि की विधि सीख कर, अन्ततः उससे भगवान पर ही प्रहार करता है । फिर भी
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