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एक विराट् निस्तब्धता का देश-कालातीत प्रसार ।
उसके बीच सहसा ही एक निःस्वन ब्रह्माण्डीय विस्फोट । नाद, बिन्दु, कला का एकाग्र उत्सरण ।
...और लो, पृथा के गर्भ से फूट पड़ा एक अनन्तगामी इन्द्रधनुषी हुताशन । त्रिकोणाकार । उसकी परम शीतल ज्वालाओं में रह-रह कर उठती नाना रंगी ऊर्मियाँ । त्रिकोण की दोनों खड़ी भुजाओं पर भंगिम लपटों के रंगीन छल्ले। ___ और उस महा हुताशन की शिखा, आकाश के सारे ऊर्ध्वातिऊर्ध्व मण्डलों का भेदन करती हुई, तुरीयातीत शून्य में विलीयमान है।"
.."अनायास एक अगाध शान्ति में सब कुछ निर्वाण पा गया। "एक महाशून्य, विराट, निःसीम । "कहीं कोई नहीं । मैं भी नहीं। वह भी नहीं । .."पर यह कौन है, जो इस सब को देख रहा है ?
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