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इतना आस्फालित हुआ है, तो सदा को विच्छिन्न हो जाने के लिये । इस लघुत्तम के शून्यांश पर ही, आत्मिक परमाणु-विस्फोट होता है। और उसमें से वह चिदाकाश खुलता है, जो लघु और महत् के सारे अक्षगत परिमाणों और आयामों से उत्तीर्ण होता है।
तो ठीक है, जितना तान सको अपने को, तानो मुझ पर । इस ध्रुव पर तुम्हारे हर आत्मघात के तनाव को चुक कर निरर्थक हो जाना पड़ेगा । क्योंकि महावीर से बाहर तम्हारा कोई आत्मघात सम्भव नहीं। महावीर ही तुम्हारा अन्तिम आत्मघात है। जीवन का विकल्प मृत्यु नहीं है,श्रेणिक । निरन्तर का विकल्प अन्तराल नहीं है। अन्तराल में कब तक ठहर सकते हो ? आगे बढ़ो, कि केवल जीवन है । हर देशान्तर, हर कालान्तर, हर जन्मान्तर एक और जीवन ही है । एक और जीवन, एक और जीवन । अनन्त जीवन । वही महावीर है। उससे तुम्हारी बचत नहीं। अव्याबाध जीवन । परिपूर्ण जीवन ।।
तव क्या मगध और क्या वैशाली ? मेरा पिछला चरण वैशाली में टिका है, तो डग भर कर अगला चरण मैंने मगध में रक्खा है। अपनी यात्रा की इस एक ही छलांग को काट कर दो कैसे करूँ। यदि एक ही अखण्ड भूमा, तुम्हारे भूगोल में दो में विभाजित है, तो रहे । पर उसी कारण क्या मैं चलूंगा नहीं, डग नहीं भरूँगा? और यदि मैं चलंगा, तो सारे खण्ड-खण्ड भूगोल को अखण्ड हो जाना पड़ेगा। मेरे इस चरण पात में यदि वैशाली और मगध के सीमान्त टूट गये हैं, मानचित्र लुप्त हो गये हैं, तो मैं क्या करूँ ? जो वस्तु का स्व-भाव है, वही तो घटित हुआ है।
और अब जब श्यामाक गाथापति के शालि-क्षेत्र के किनारे, इस परित्यक्ता भूमि में ध्रुव निश्चल खड़ा हो गया हूँ, तब देख रहा हूँ, कि बसुन्धरा के गर्भ में ही भूचाल आया है। उसकी तहें उलट कर मेरे पैरों से लिपट गईं हैं। मनुष्य की उद्धत विजयाकांक्षा ने बार-बार उसके अखण्ड गर्भ को क्षत-विक्षत, खंड-खंड किया है। उसके पयोधर वक्ष को अपने बलात्कारी नाखूनों से लहूलुहान कर के उस पर अपने नाम और अधिकार की महरें मारी हैं। उसे चराचर मात्र की उस आद्या माँ ने मेरी कायोत्सर्गित दृष्टि के समक्ष निवेदित कर दिया है । कि नहीं, वह मुझे इस नदी-तट से हटने नहीं देगी, जब तक मैं उसे अपने ध्रुव में एकाग्र, संयुक्त, अखण्ड न कर दूं। अपनी त्रिवली के त्रिकोण में उसने मेरे चिर चलायमान चरणों को जकड़ कर मानो कूटस्थ कर दिया है। अपने अपरम्पार पयोधरों को उस आद्या माँ ने अन्तरिक्ष में उद्भिन्न कर मेरे ओष्ठाधरों में बरवस विस्फोटित कर दिया है, कि मैं उसके अक्षय्य जीवन-स्रोत को जानूं। जानूं , कि वह कौन है, और मैं कौन हूँ। जानूं, कि वह केवल क्षणिक मृत्तिका-पिंड नहीं, शाश्वत
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