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करना होगा । क्योंकि यह उसके अस्तित्व की शतं है। यह उसको आत्मा पर चरम आक्रान्ति है।
अपने से श्रेष्ट और बलवत्तर तो मैंने आज तक किसी को नहीं जाना । अपने से ऊपर किसी को स्वीकारना मेरी आदत में नहीं। • महावीर, तुम मेरी ही भूमि पर अटल ध्रुव की तरह खड़े हो कर, मुझ से वह स्वीकृति चाहते हो ? तुम मेरे अहम् की समर्पिति से सन्तुष्ट नहीं हो सकते। उसे अधिकतम उदंडायमान कर के, उस पर अपने को छाप देना चाहते हो।
तुमसे बड़ा मेरा शव देश और काल में कभी हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं ।
आज कितने ही महीने हो गये, ऋजुबालिका नदी के तटवर्ती इस जीर्ण उद्यान में, श्यामाक गाथा पति के इस शालि-क्षेत्र में, मानो सारी पृथ्वी से निर्वासित हो कर, विचर रहा हूँ। उस माटी की अतल अंधियारी गहराइयों में धंस कर 'अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहा हूँ, जिस पर तुम निश्चल महामेरु की तरह अपराजेय खड़े हो ।
इस महामेरु को हिला देना होगा, जीत लेना होगा, उखाड़ कर फेंक देना होगा, वर्ना श्रेणिक से जिया नहीं जा सकेगा।
__ ओ ध्रुव, तुम्हारे रहते, मैं अपना नया ध्रुव कैसे स्थापित कर सकता हूँ ? अन्तिम दाँव लग चुका है : तुम रहो, या मैं रहूँ, या कोई न रहे। केवल सता रहे।
श्रेणिक पराजित होना नहीं जानता । वह अपने गन्तव्य पर पहुँच कर रहेगा । . .
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