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________________ २१२ सृष्टि का एकमेव अभियुक्त मैं, वर्द्धमान महावीर, यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा में हूँ। तुम्हारा जी चाहा दण्ड झेलने को उद्यत, प्रस्तुत ।... केवल निष्कम्प भाव से समर्पित, कायोत्सर्ग में विसित खड़ा हूँ। जो सम्मुख आये, उसके प्रति उत्सर्गित , और कोई विकल्प या क्रिया सम्भव नहीं रही है इस क्षण । हर परिणमन को केवल देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ। केवल मात्र अपनी चिक्रिया में लवलीन, अन्य सारी क्रियाओं का निपट साक्षी, द्रष्टा । सहसा ही सुनायी पड़ी एक ग्वाले की आवाज़ : 'देवार्य, मेरे ये बैल आपके निकट ही चर रहे हैं। इन पर निगाह रक्खें । गाँव में अपनी गायें दुहने जा रहा हूँ। थोड़ी देर में लौट आऊँगा।' सुना भी नहीं, अनसुना भी नहीं किया। मैं अपनी जगह पर हूँ : बैल अपनी जगह पर हैं । निरंकुश बैल जाने कब चरते-चरते, बहुत दूर निकल गये, और कहीं झाड़ियों की ओट हो गये । ग्वाले ने जब लौट कर बैलों को यहाँ नहीं देखा, तो बोला : 'देवार्य, मेरे बैल कहाँ चले गये ? आपको सौंप गया था न ? कई बार पूछने पर भी ग्वाले को कोई उत्तर नहीं मिला । वह भभक उठ : 'अरे ओ अधम साधु, उत्तर तक नहीं देता ! मानुष है कि पत्थर ?' फिर भी कोई उत्तर नहीं लौटा। अनुत्तर है यह साधु, पत्थर से भी अधिक अविचल । 'अरे ओ जोगड़े, तेरे ये कान हैं, कि कीड़ों के बिल हैं ? सुनता तक नहीं रे नराधम ! बोल मेरे बैलों को कहाँ छुपा दिया है तेने ?' साधु पर्वत से भी अधिक निश्चल, हवा से भी अधिक लापर्वाह दीखा । केवल कान से तो वह सुनता नहीं। तन के तार-तार से सुनता है । सारे प्रश्नों का एक ही उत्तर है, मानो उसकी वह अनुत्तरता। 'अच्छा, ठहर दुष्ट, तेरे कान के कीड़े अभी निकाल बाहर करता हूँ ! . . . ' नाकुछ समय में ही ग्वाला कहीं से कास की एक सलाई तोड़ लाया । उसके दो टुकड़े किये। फिर निपट निर्दय भाव से उसने श्रमण के दोनों कानों में वे सलाइयाँ बेहिचक खोंस दी। तदुपरान्त पत्थर उठा कर उन्हें दोनों ओर से ठोंकने लगा । जब दोनों सलाइयों के छोर भीतर एक दूसरे से भिड़ गये, तो जो सलाइयों के सिरे बाहर रह गये थे, उन्हें दराँते से काट दिया, ताकि उन्हें कोई निकाल न पाये । तब उसने राहत की सांस ली। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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