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और प्रकृति आपो आप ही यात्रित हो रहे हैं, अपने ही भीतर अन्तरित होकर, फिरफिर विस्तारित हो रहे हैं।
- 'शिशिर ऋतु इस समय अपनी पराकाष्ठा पर है। कभी-कभी ओसपाले में मारी प्रकृति ढंक जाती है। कभी हिमपात और वर्षा भी होती है । बछियों-सी टण्डी हवाएँ पसलियों और हड्डियों में बिंधती हैं। गल-गल कर अंग-प्रत्यंग फिर पथरा जाते हैं। ठिठुरन से शरीर के साँधे अकड़ जाते हैं । चलना कटिन हो जाता है। स्वयम् जैसे बर्फ की शिला हो रहता हूँ। यह जकड़न टूटे तो कैसे टे । · · · नहीं, इसे तोड़ने वाला मैं कौन होता हूँ । शीत की यह वेधकता तीव्र से तीव्रतर होकर मानो मुझे चुनौती देती है। मेरी हड्डियों और नसों के रक्त को, मेरे शरीर के अणु-अणु को बीध कर भी इसे चैन नहीं है। और इसके प्रति अपने को निःशेष दिये बिना मुझे चैन नहीं है। इसकी सामर्थ्य
और सीमा को जान लेना चाहता हूँ। या तो इसे चक जाना होगा, या मुझे चुक जाना होगा।
सो इसके दुःसह आघातों को झेलने के लिये, किसी नदी तट या पर्वत की उन्मुक्त चोटी पर जा खड़ा होता हूँ । काया को उत्सगित कर, उसकी हर टूटन और विनाशीकता को सम्पूर्ण हृदय से भोगना और जीना चाहता हूँ। जानना चाहता हूँ कि काया का विनाश होने पर कुछ शेष रहता है या नहीं। जानना चाहता हूँ कि केवल शरीर ही हैं या उसके अतिरिक्त कोई और भी मैं हूँ। आत्मा की अविनाशीकता की बात बहुत सुनता आया है। कहीं भीतर उसकी प्रतीति भी है। पर उसकी स्वायत्त और स्व-साक्ष्य अनुभति पाये बिना जी को विराम नहीं है । . .
सो बदहवास-सा खड़े पर्वतों पर चढ़ता ही चला जाता हूँ । आस-पास के झाड़ी-झंखाड़ों की बाधा पर भी लक्ष्य नहीं रहता। कटीली झाड़ियों, राह के कांटे-कंकड़ों की चुभन, और शिलाओं की टकराहटों और ठोकरों से तनबदन छिल जाता है। काँटों और डालों के खंप जाने के कारण असह्य वेदना से शरीर टीसने लगता है। अभ्यासवश हाथ काँटा निकालने का उठ जाता है, जख्म देखने को आँखें चौकन्नी हो जाती है। - ‘नहीं, यह कैसे हो सकता है । काँटे, कंकड़, पत्थर का धर्म है चभना। तो क्या मेरा कोई अपना धर्म नहीं ? है : इन आघातों से परे जो मेरा अघात्य स्वभाव है, उसमें जीना, उत्तीर्ण होना। घायल अंगांगों से बह आये रक्त के प्रति कृतज्ञ होता हूँ। एक अनोखी मुक्तता उसमें अनुभव करता हूँ। ___.. पर्वत की इस टोच पर पहुच कर, अपने को तने हुए धनुष की तरह खड़ा पाया। शीत पवन के झकोरे यहाँ चारों ओर के खुले दिगन्तों से आकर मुझ पर प्रचण्ड प्रहार कर रहे हैं। देखते-देखते दूर क्षितिज पर सूर्य
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