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________________ कौन उत्तर देता है फिर मगध में विहार कर रहा हूँ । इसकी सतह पर नहीं चल रहा, इसकी तहों में विचर रहा हूँ। कितना प्रशस्त, गहन और लचीला है इसका गर्भकोश । उसके गहराव में गोपित है एक श्रीकमल । उसकी सहस्रों पाँखुरियों में निर्बाध संचरित हो रहा हूँ। किसी परम गर्भाधान को आकुल माँ की कोख की तरह यह भूमि मुझे अपने में आत्मसात् कर रही है। पर इसकी सतह पर चल रहे कूट-चक्रों का अन्त नहीं। मगधेश्वर श्रेणिक लुब्धक पुरोहितों, कुटिल ब्राह्मणों, तांत्रिक रासायनिकों से घिरा रात-दिन साम्राज्यविस्तार के षड्यंत्र रच रहा है। आये दिन नित्य हो रहे पशु-यज्ञों से मगध का आकाश मलिन और संत्रस्त है। श्रेणिक के तांत्रिकों ने विष-कन्या के प्रयोग से अजेय योद्धा अंगराज दधिवाहन की हत्या करवा दी है । और पूर्व के समुद्र-दुर्ग चम्पा पर अधिकार कर लिया है। पर उसकी मदिरा के नीलमी प्याले में जो परछाँही पड़ रही है, वह साम्राज्य की नहीं सुन्दरी की है। अनुपम सौन्दर्य का खोजी अन्ततः आत्मकामी होता ही है । काम अपनी उद्दामता के छोर पर पहुँच कर आत्मकाम ही हो सकता है। श्रेणिक, तेरा तन-मन चाहे जहाँ भटके : और उसे अभी बहुत भटकना है। पर तेरी चाहत की सुन्दरी मेरे अन्तःपुर में बैठी है। उसके पास पहुंचे बिना तुझे चैन नहीं मिल सकता। सो तेरी सारी प्रवृत्तियों और षड्यंत्रों की धुरी पर वही कमला आसीन है । जिस दिन वह चाहेगी, अपनी बाहु के एक ही आलोड़न से वह तुझे अपनी छाती पर खींच लेगी। तेरे सारे रास्ते अन्ततः उसी कमला के महल की ओर जा रहे हैं । श्रेणिक, पिछली बार तू अपने ऐश्वर्य के बीच मुझे आमंत्रित करने आया था। मैं चुप रहा । आँख उठा कर भी मैंने तेरी ओर नहीं देखा। क्योंकि मेरी दृष्टि एकाग्र तेरी आत्मा पर लगी है। उसकी मुझे ज़रूरत है। तरल, निर्मल, और निष्कपट है तेरी चेतना। ठीक मुहूर्त आने पर वह मेरे प्याले में सहज ही ढल जायेगी। पर आज मेरी चुप्पी और अवहेलना से तू नाराज़ है। अपने चाटुकारों के बीच तू श्रमण वर्द्धमान की निन्दा में रत रहता है । साम्राज्य को भूल तेरा समूचा जी इस नग्न भिक्षुक में आ अटका है । इसकी महिमा को ढाँके बिना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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