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'थोड़ी ही देर में कुमार हँसता हुआ, उन्मुक्त, मस्त खड़ा दिखाई पड़ा। देव ने उसके चरणों में विनत हो वन्दन किया। फिर सर उठा कर बोला :
'मेरा देवत्व हारा : हे मानव-पुत्र तुम जीत गये। मैं संगम देव, अपने देवत्व का अभिमान लेकर, तुम्हारी परीक्षा करने आया था। हे मानवेन्द्र, हे अमरेन्द्र, मैं धन्य हो गया। मैंने पहचाना, तुम कौन हो। तुम वीरों के वीर, महावीर हो नाथ ! जय महावीर : 'जय महावीर · · 'जय महावीर !'
कण-कण, तृण-तृण, पर्वतों, समुद्रों, हवाओं, अन्तरिक्षों में यह नाम आलेखित हो गया।
दूर पर साक्षी खड़े वर्द्धमान के सखाओं में होकर यह संवाद, यह नाम, वैशाली को पार कर, समस्त आर्यावर्त में व्याप गया।
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