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की रस्सियां छूटकर रहट पर से उतर जाती हैं। भर कर ऊपर आती गागरें, डुब-डुब कर बावली की गहराई में डूब जाती हैं। इतनी सारी पनिहारिनें, और वर्तुल में घिरा नन्हा राजा। उफनते आँचलों, चूमते ओठों में होड़ मच जाती है। किस छाती में खो गया कुमार, पता नहीं चलता। किन्तु सब कृतार्थ भरी गागरोंसी छलकती, छमकती, माटी की गागरें कुएँ में डुबा कर, घर लौट पड़ती हैं। सास, ननंद और पतियों को उत्तर नहीं दे पाती हैं । कोहराम मच जाता है।
बालिका हो कि युवती हो, कुँवारी हो कि ब्याही हो, प्रौढ़ा हो कि वृद्धा हो, किसी भी जाति या वर्ण की हो, नगर के राह-चौराहे पर हो, या वनांगन की डगरिया में हो, गदबदा, गोरा, डाल-पके आम-सा केशरिया-गुलाबी बालक हर किसी की राह रोक कर खड़ा हो जाता है : बेखटक आँचल खींच कर कहता है :
'ओ अम्मा, दूध पिलाओ' · । तुम्हारा दूध बहुत मीठा है।' कुंवारी किशोरियों के ही नहीं, बालिकाओं के आँचल भी, उसके निर्दोष माधव ओठों को देख अकुला उठते हैं। किसी भी वय की स्त्री हो, देश-काल, लोक-लाज की मर्यादा भूल, निरी माँ हो रहती है । वैशाली के चौराहे, एक अपूर्व दृश्य से धन्य हो उठते हैं। ____ और अभी उस दिन राज-ग्वाले ने गौशाला में जाकर अचानक पाया : कुमार वर्द्धमान, नन्दी गाय के चारों स्तन अपनी मुट्ठी में एक साथ पकड़ कर पी रहे हैं। ___ सुनकर राजकुलों की मर्यादाओं में पली त्रिशला की भौहें ऊँची हो गई । रोष से डपट कर बोली :
'ये कैसे ऊधम मचाये हैं तेने ? खबरदार आज के बाद, महल से नीचे उतरा है तो। मैं क्या मर गई हूँ ? हर किसी का दूध पीता फिरता है ! गाय के थन भी पीने लगा है । तेरे उपद्रवों की हद हो गई है। राह चलती स्त्रियाँ ? कौन हैं वे तेरी · · · ?'
'अम्माएं हैं, मां · · ·इतनी सारी अभ्माएँ । सब मेरी अम्माएँ !' 'अरे तो मैं क्या कम पड़ गई तेरे लिए ?' 'तुम तो हो ही माँ, पर मुझे सब अम्माएँ चाहिये ।' 'तू मेरा बेटा है, और किसी का नहीं . ।'
'तुम्हारा भी हूँ, पर केवल तुम्हारा नहीं, मां । लगता है सब अम्माओं का बेटा हूँ।'
'अम्मा तेरी एक है, समझा ! मैं · · ·! सब अम्माओं की बात फिर कभी न कहना। ...
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