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________________ इतिहास के बाहर खड़े हो जाते हैं। मौजूदा अनाचारी व्यवस्था के दुश्चक्र को तोड़ कर, उसे एक अभीष्ट सम्वादी दिशा में मोड़ देने के लिए उन्हें यह अनिवार्य लगता है, कि वे इस व्यवस्था से निर्वासित हो कर ही इसकी नाशग्रस्त जड़ों में विस्फोट की सुरंगें लगा सकते हैं। इस प्रकार अनायास कुछ ऐसा घटित हुआ है कि मेरे महावीर एक वारगी ही संयुक्त रूप से ऐतिहासिक और परा-ऐतिहासिक (मेटा-हिस्टोरिक) व्यक्तित्व के रूप में सामने आते हैं। आरम्भ में ऐसी कोई स्पष्ट परिकल्पना मेरे सामने नहीं थी। लिखने के दौरान ही मुझे स्पष्ट प्रतीति होती गई, कि महावीर को रचने वाला मैं कोई नहीं होता। मुझे मात्र माध्यम बना कर, स्वयम् उन भगवान ने ही अपने को इस कृति में नये सिरे से उद्घाटित, अनावरित और पुनसृजित किया है। आज की इस दिशाहारा, आत्महारा मानवता को देशकालानुरूप नूतन उद्बोधन देने के लिए, हमारे युग के उन तीर्थंकर प्रभु ने मेरी क़लम से उतर कर हमारी इस मर्त्य धरती पर फिर से चलना स्वीकार किया है। यह उनकी कृपा और मर्जी है : मेरी क्या सामर्थ्य कि मैं उन्हें अपने मनचाहे सांचों में ढाल सकूँ। महावीर-जीवन के जो यत्किचित् उपादान इतिहास और आगमों में में उपलब्ध होते हैं, उनके आधार पर कोई घटना-प्रधान सुश्रृंखलित महावीर कथा रचना सम्भव नहीं है। महावीर किसी कथा-नायक से अधिक एक युगविधाता और युगान्तर-दर्शी व्यक्तित्व के रूप ही हमारे सामने आते हैं। इसी से यह उपन्यास एक व्यक्तित्व और विचार-प्रधान महागाथा (एपिक) के रूप में ही घटित हो सका है। बीच में हमारे यहाँ विचार-कविता की बात उठी थी। मुझे लगता है कि उसके पीछे हमारे युग का कोई अनिर्वार तक़ाज़ा काम कर रहा था। आज मनुष्य-जाति इतिहास के अन्तिम सीमान्तों पर, अपने अस्तित्व के लिए मरणान्तकः युद्ध लड़ रही है। We are on the frontiers : and we seek a final answer, Here and Now, हम फ्रंटियर्स पर जूझ रहे हैं, और हमें दो टूक और आखिरी जवाब चाहिये । कोई ऐसा मौलिक समाधान, जो हमारे उखड़े हुए अस्तित्व को एक नया और आधारभूत आयतन (सन्स्ट्रेटम) दे सके । हम मोर्चों पर हैं, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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