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नात्मक पारदृष्टि और कल्पना की ही उपज होते हैं । और इन्हीं महाकवियों के सारस्वत प्रसाद के हम ऋणी हैं, कि आज भी हमारे मावलोक और कल्प- लोक में राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर या क्रीस्त जीवित रह सके हैं । इसी सर्जक कल्प- शक्ति ने अपनी कालजयी प्रतिभा के बल, उन्हें शताब्दियों के आरपार मनुष्यों की हजारों पीढ़ियों के रक्त में संक्रान्त किया है, और इस क्षण तक हमारे रक्ताणुओं में उन्हें अमर और जीवित रक्खा है ।
वैदिक ऋषि की यह उक्ति कि कवि 'कविर्मनीषी परिभू स्वयम्भू' होता है, एक मौलिक सत्य की अभिव्यक्ति है और सर्वथा सार्थक है । अत्याधुfre मनोविज्ञान और फिज़िक्स (भौतिकी) तक से इस बात को समर्थन प्राप्त हुआ है कि कल्पना - शक्ति महज़ कोई हवाई उड़ान या जल्पना मात्र नहीं है । अत्याधुनिक परा-मनोविज्ञान और आध्यात्मिक मनोविज्ञान के आदि जनक कार्ल गुस्तेव युंग ने गहरे अन्वेषण के साथ यह प्रस्थापित किया है कि सत्यतः और वस्तुतः किसी पारद्रष्टा कलाकार की सशक्त और तीव्र कल्पना शक्ति हो, मानवीय ज्ञान की एकमेव सुलभ ऐसी क्षमता ( फ ेकल्टी) है, जो बहुत हद तक अतीन्द्रिय प्रज्ञा के निकटतम पहुँच सकती है। वह मानों आत्मिक सर्वज्ञता का ही एक ऐन्द्रिक-मानसिक पर्याय है। रचनाकार की ज्ञानात्मक चेतना अपनी सृजनात्मक ऊर्जा के चरम उन्मेष के क्षणों में एक ऐसी पराकाष्ठा को स्पर्श करती है, जहाँ उसके कल्प- वातायन पर देशकाल के तमाम व्यवधानों को भेदकर, हजारों वर्ष पूर्व के व्यक्ति, वस्तु और घटना क्रम तक अपने यथार्थ रूप में साक्षात् हो सकते हैं । तब कोई आश्चर्य नहीं कि ऋषभदेव, भरत, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शकुन्तला, सावित्री - सत्यवान् या होमर की हेलेन, उनके रचयिता महाकवियों द्वारा तादृष्ट अपने सारभूत रूप में हमें ज्यों के त्यों उपलब्ध हो सके हैं ।
कई अधुनातन भौतिकी - शास्त्रियों (फिजिसिस्ट ), वैज्ञानिक उपन्यासकारों और विज्ञान- दार्शनिकों ने वर्तमान में यह प्रस्थापना की है कि व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं के स्थूल भौतिक पर्यायों का कालान्तर में विघटन हो जाने पर भी, उनके सूक्ष्म पर्याय अनन्त लोकाकाश में अक्षुण्ण रहते हैं। बहुत सम्भव है, कभी आगामी युग के वैज्ञानिक टेलीविज़न और रेडियो की तरह ही ऐसे यंत्रों का आविष्कार कर दें, जिनके माध्यम से हम सुदूर
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