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- 'लेकिन मां, इस सीता नदी को तो देखो । नील-पर्वत पर बहती यह फेनिला, एकाएक अदृश्य होती-सी, विदेह क्षेत्र का भेदन कर गई है। मेरुपर्वत की ईशान दिशा में इसी सीता नदी के पूर्व तट पर नील कुलाचल के समीप वह जम्बू-स्थल है, जिसके केन्द्रीय जम्बू-वृक्ष की छाँव में इस समय लेटा हूँ, तुम्हारे नाभि-कमल के सिरहाने । योजनों में फैले हैं इस जम्बू-वृक्ष के मूल, तने, शाखाएँ । नीलमणि-प्रभ है इसका महास्कन्ध : इसकी हीरक शाखाओं और पन्ने के पत्तों में यह कैसा अनोखा लचाव है। और इसकी डालों में लूमते जम्बू फलों के जूमखे तुम्हारे वक्ष पर झुक आये हैं, माँ, और इनका जामुनी-गुलाबी रस, कैसे रभस-आस्वाद से मुझे विसुध किये दे रहा है । . . . और देखो, वह मेरु-पर्वत की नर्ऋत्य दिशा में है शाल्मली-स्थल : उसके शाल्मली वृक्ष की दक्षिण शाखा पर अविनाशी जिन-मन्दिरों की एक पूरी श्रेणी भास्वर है। · देख रहा हूँ, नील-पर्वत के ढालों में नीलवान, उत्तर-कुरु, चन्द्र, ऐरावण, माल्यवान नामा महाहृद । उनके रत्नों से चित्र-विचित्र तट । उनके कमलों पर बने नागकुमार देवों के फेनोज्ज्वल भवन । · · · और कांचन-कूट नामा उस गिरिमाला पर, अधर में आसीन वे जिन-प्रतिमाएँ । उनकी वैडूर्य विभा में झलकते प्रकृति के नव्य-नूतन परिणमन । • मेरु-पर्वत के पश्चिमोत्तर में गन्धमादन महापर्वत पर, भोगंकरा, भोग-मालिनी, वत्समिला, अचलावती देवियों को नीलमी घासों में क्रीड़ा करते देख रहा हूँ। · · नीलाचल को पार कर
गन्ध-मादिनी, फेन-मालिनी, ऊर्मि-मालिनी नदियों के प्रवाहों पर पग-धारण .. करते, एकाएक दिखाई पड़ गई हैं विदेह क्षेत्र की वे अविनाशी नगरियाँ ।
ग्रह-नक्षत्रों की नाना रंगी ज्योतियों से दीप्त हैं उनके भवन, कक्ष, अन्तरायण । वहाँ नित्य उद्योतमान कैवल्य-सूर्य तीर्थंकरों के समवशरणों में मेरी अस्मिता विलुप्त प्राय है। · ‘इन विदेह क्षेत्रों में अर्हत्ता और भगवत्ता ही, भोग्य पदार्थ बनकर, जैसे पल-पल मनुष्यों की सारी भोगाकांक्षाओं को विपल मात्र में तृप्त कर देती हैं। भूमा यहाँ भूमि में फलद्रूप हो उठी है। कैवल्य-सुख यहाँ भोजन के स्वाद तक में उतर आया है ! . . . ' ___ 'रुको मान, यहीं रुक जाओ । मेरे पास आओ, मेरे पास आओ, तुम्हारी इन्द्रियों और देह में झरते इस अतीन्द्रिय सुख में मुझे डूब जाने दो · · · !' - 'लेकिन मां, अवस्थान अभी सम्भव नहीं हो रहा । प्रस्थान और अभियान की बिजलियाँ मेरे पैरों में खेल रही हैं। जम्बूद्वीप की अन्तिम तट
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