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________________ २७८ · · ·और अब तुम कहते हो कि तुम वैशाली में नहीं रहोगे; तो बोलो, मुझे अब यहाँ किसके भरोसे छोड़े जा रहे हो! नहीं : नहीं चाहिये मुझे तुम्हारे ये पूजा के फूल ! प्यार नहीं कर सकते मझे, तो किस अधिकार से मुझे यों मार कर, अपनी राह अकेले चले जाना चाहते हो? · · · मेरा कहीं कोई नहीं . . . आकाश की जायी मैं चिर अनाथिनी, किसी तरह अपने रूप की माया में अपने को भुलाये थी। तुमने उस माया के पाश को भी छिन्न करके, निरी नग्न मुझे अपने आमने-सामने कर दिया है। · · · मैं तो अकेली ही थी जनम की : तुमने मुझे अन्तिम रूप से अकेली कर दिया ! मेरा मरना और जीना दोनों ही तुमने मेरे हाथ नहीं रक्खा । कौन हो तुम मेरे, ओ बलात्कारी, जो मेरी सत्ता के यों बरबस ही स्वामी हो बैठे हो ? . आधार नहीं दे सकते, तो अन्तिम रूप से निराधार क्यों कर दिया इस दुःखिनी को। और अब कहते हो, छोड़ कर चले जाओगे, इस वैशाली को, जिसे तुम आम्रपाली कहते हो। इतने निर्मम तुम हो सकते हो यह तो कभी नहीं सोचा था। '. . 'जानती हूँ, मेरे द्वार पर तुम कभी नहीं आओगे। तुम्हारे चरणों की धूल बन कर इस रूप को सार्थक कर सकं, ऐसी स्पर्धा एक गणिका कैसे कर सकती है ! हाय, मरण के इस महाशून्य में किसे पुकारूँ? कहाँ है मेरा परित्राता? दिशाएँ निरुत्तर हैं . . . ! तुमको देख रही हूँ, केवल पीठ फेर कर जाते हुए। . बोलोगे नहीं ? · . . अम्बा जो किसी की नहीं अपने मूलाधार में घुमड़ आये प्रलय को, अपने अंगूठे तले क़लम से दाब कर मैंने लिखा : ' । ' ' 'किसी की तुम्हें इसलिए नहीं होने दिया गया, क्योंकि तुम्हें सब की होना था। कापिणों और सुवर्णों की क्रीत दासी नहीं, सर्व की आत्म-वल्लभा माँ ! .. • “नहीं, तुम कभी कहीं अकेली नहीं हो, अम्बा। · · ·अकेली अब तक याद थीं भी, तो आज निश्चय ही वह नहीं हो तुम ! · · · मैं कहीं जाऊँ, कहीं रहूँ, हर विशा आम्रपाली हो रहेगी। वहाँ मेरे स्वागत में खड़ी नहीं मिलोगी क्या तुम ? - '.. परित्राता तुम्हारा अहर्निश तुम्हारे साथ खड़ा है। वह अन्यत्र कहीं नहीं है। महावीर यदि कोई अन्य और अन्यत्र है, तो वह भी नहीं। उस अपर और एकमेव अपने को पहचानो! .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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