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विशाला के धानी सौंधे आँचल में एक बार टुक निश्चित हो कर सो जायें। वैशाली तब उनकी होगी । साम्राज्य तब अपनी फ़िक खुद ही कर लेगा। · · पर उन्हें तब लगेगा कि वारि-वसना कुमारी पृथ्वी, जयमाला बनकर उनके गले में झूल गयी है !'
'मान, उनकी मर्यादा तोड़ने को कहते हो मुझसे ?' _ 'उनकी मर्यादा तुम हो, मौसी। उनका यह ग्रंथिभेद तुम्हारे सिवा और कौन कर सकता है?'
'ग्रंथि की बात तुमने भली कही, मान । ग्रंथियों का यह जाल तो उनके आसपास ऐसा छोरहीन फैला है, कि सोचती हूँ, तो विक्षिप्त हो जाती हूँ। वे चारों ओर से इसमें जकड़े हुए हैं। महामात्य वर्षकार है उनके साम्राज्य स्वप्न का वाहक । उसी के बनाये नक्शों पर रात-दिन इनकी उँगली घूमती रहती है। चंपा को घेरे बैठा है, इनका सेनापति चंडभद्रिक । वह मगध के सैन्य बल पर, इनकी आँखों में धूल झोंक कर, चंपा का सिंहासन हथिया लेने के षड़यंत्र रच रहा है । और अपनी ही कोख का जाया अजातशत्रु, मेरे सौभाग्य तक का शत्रु हो उठा है। ये उसे आँखों से दुलराते हैं, पर इनको वह फूटी आँखों नहीं देखना चाहता । बाप और बेटे के बीच सम्राटत्व की टक्कर है। अपना ही घर फूटा हुआ है। मगध में आज कौन शत्रु है और कौन मित्र, पहचानना कठिन हो गया है। • ‘बहुत बातें हैं, वर्द्धन, मेरा दीमाग काम नहीं करता। • बहुत व्याकुल हो कर तेरे पास चली आयी हूं ! ... ऐसी ऐसी बातें हैं कि कहते नहीं बनतीं . . . ' .
'जब मेरे पास आयी हो, तो साफ़-साफ़ कहो, मौसी, सब सुनना चाहता हूँ।'
- 'जानता तो है, चंपा के राज-महालय में बैठी हैं, मेरी जीजी पद्मावती, तेरी बड़ी मौसी । उनकी बेटी चंद्रभद्रा शील-चंदना, आर्यावर्त के पूर्वीय समुद्र-तोरणं को सौंदर्य-लक्ष्मी है। ऐसी सुंदर है तेरी यह बहन और मेरी भागिनेया, कि चंदन नदी की लहरें उसमें साकार हुईं हैं । सम्राट कहते हैं किशील-चंदना का ही दूसरा नाम चंपा है। -चंपा में बिछेगा भावी साम्राज्यलक्ष्मी का सिंहासन ! और तब वैशाली उनकी तलवार के कोश में होगी · · !'
'मुझे सब पता है, मौसी ! तुम्हारे सम्राट के मन को मैं हथेली पर रक्खे आँवले की तरह पढ़ता रहता हूँ। अच्छा, और भी सब साफ़-साफ़ कहो, मौसी।'
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