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________________ २४४ 'सो तो मुझे पता नहीं । पर अभय चुप रहता है। बड़ा शालीन और गंभीर लड़का है। अपनी माँ से अधिक मुझे प्यार करता है। आता है, तो बड़ी देर चुपचाप मेरे पास बैठा रहता है। बिना बोले ही मेरी सेवा करता रहता है। या फिर कभी मौज आने पर, अपनी नित नयी करतूतों की साहसवार्ताएँ सुना कर मुझे खूब हँसाता है । मेरी चुप्पी और उदासी उससे सहन नहीं होती । पर सम्राट की बात आने पर ख़ामोश हो जाता है, या फिर टालमटोल करता है ।' 'चतुर-चूड़ामणि है अभय राजकुमार । कूट चत्री वर्षकार तक की चोंटी उसके हाथ में है । वही तो है मगधराज का असली मंत्रीश्वर ! वैशाली की जनपद - कल्याणी आम्रपाली की स्पर्धा में मगधेश्वर के सौंदर्य - स्वप्न को सिद्ध करने के लिए, अभय ही परम रूपसी सालवती को खोज लाया था । और उसे राजगृही की जनपद - कल्याणी के गवाक्ष में आसीन कर दिया । आम्रपाली को सहस्र सुवर्ण से पाया जा सकता है, तो सालवती का दर्शन मात्र दो सहस्र सुवर्ण से हो सकता है' 'पर सालवती के होते भी सम्राट को राजगृही अंधेरी ही लगती रही। गंगा और शोण के कछारों में आधी रातों इस विजेता का दौड़ता घोड़ा क्या खोजता है ? वैशाली के सीमांत या आम्रपाली का कुँवारा सीमंत ? . • 'वर्द्धमान, चुप नहीं करोगे ' !' 'मैं उनकी निंदा - आलोचना नहीं कर रहा, मौसी। मैं उनका अभिनंदन कर रहा हूँ। मैं केवल वस्तु-स्थिति को तुम्हारे सामने पढ़ रहा हूँ । बिंबिसार श्रेणिक ने दूर से ही मेरे मर्म को छू लिया है । मैं उसके खोये-भूले बालक हृदय को तुम तक चौकस पहुँचा देना चाहता हूँ । समझ रही हो, मौसी ? वर्द्धमान को प्रिय है, श्रेणिक बिंबिसार ।' 1 'समझ रही हूँ, बेटा । तुम्हारी मुझे इस घड़ी बहुत ज़रूरत है। मुझे ही नहीं, मगध, वैशाली और समस्त आर्यावर्त को ।' 'तो जो मैं कहूँ, वह करोगी मौसी ? सम्राट से कहला दो, कि : 'आपको मेरी ज़रूरत नहीं है, तो मगध-वैशाली के सीमावर्ती गंगा तट के महल में कुछ दिन एकांत वास करने जा रही हूँ । मेरा सैन्य - परिकर मेरे साथ रहेगा । जब चाहें, वहाँ आपका स्वागत है - फिर देखो, क्या होता है !' ,, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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