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किया है। हतवीर्य और विलासी हो गये क्षत्रियों को राजसूय यज्ञ द्वारा साम्राज्यस्थापना का लोभ दिखा कर, ये ब्राह्मण उनकी निर्बल आत्माओं के साथ खेल रहे हैं, उन्हें परलोक के भयों से आतंकित किये हैं। पश्चिमांचल के ब्राह्मणों ने पूर्वांचल तक फैल कर, अवन्ती से मगध तक के राजुल्लों को धार्मिक वाणिज्य के बल अपने अंगूठे तले ले लिया है। इस समय ये सारे राजन्य या तो वेश्या के वशीभूत हैं, या वैश्य के; और कामिनी-कांचन के इन किलों पर अपनी प्रभुता कायम रखने के लिए, वे यज्ञ-व्यवसायी ब्राह्मणों की यज्ञोपवीतों पर टॅगे हुए हैं। काशी, कोसल, मगध और वैशाली तक में ये छद्म-याज्ञिक ब्राह्मण फिर तेजी के साथ उत्कर्ष कर रहे हैं । मगधेश्वर ने राजगृही के सीमान्तों पर ऐसे कई ब्राह्मण आचार्यों को प्रतिष्ठित कर दिया है, जो उनकी काम और साम्राज्यलिप्सा की तृप्ति के लिए अपनी प्रयोगशाला में सत्यानाशी रसायनों और विषैले शस्त्रों का निर्माण कर रहे हैं, और प्रतिपक्षी राजाओं को मोह-मूछित कर मार डालने के लिये विष-कन्याएँ तैयार कर रहे हैं। कोसलेन्द्र प्रसेनजित तो मानों इन ब्राह्मणों के अनाचारी हिंसक यज्ञों के बल पर ही सारी पृथ्वी पर राज्य करना चाहता है : सारे जगत के सुवर्ण और कामिनी को भोगना चाहता है। उज्जयनी और कौशाम्बी ने भी इन याज्ञिकों को अपने कवच बना कर पाल रक्खा है। सारे ही राजतंत्रों और गणतंत्रों में, अध:पतित क्षत्रियों की कायर और लोभ-कातर आत्माओं में ये ब्राह्मण गहरे पैठे गये हैं। पर कपिलवस्तु और वैशाली में इन्हें प्रश्रय नहीं मिल सका है । शाक्य और लिच्छवि अपने स्वाधीन क्षात्रतेज और ज्ञानतेज पर आज भी अटल हैं। वैशाली के गणराज्य में ब्राह्मण को निर्बाध प्रवेश है : पर उसकी प्रभुता का सिक्का वहाँ नहीं जम पा रहा। इसी से मगध के मंत्रीश्वर ब्राह्मण-श्रेष्ठ वर्षकार की आँख की किरकिरी बन गयी है वैशाली।
___ मगध का यह महामात्य वर्षकार, श्रेणिक बिंबिसार की साम्राज्य-लिप्सा की ओट, फिर से समस्त आर्यावर्त में ब्राह्मण-साम्राज्य स्थापित करने का सपना देख रहा है। इस सर्वस्व-त्यागी ब्राह्मण का तप-तेज और कूट-कौशल देखने लायक़ है। सारे राजुल्लों और गणनायकों को गोट बना कर वह ब्राह्मण-साम्राज्यस्थापना की शतरंज खेल रहा है। अपनी कुटिल चालों से वह, इन सारे रक्तसम्बन्धों में बँधे राजन्यों के बीच शीत युद्ध, छुपे विग्रह और शक्ति-संतुलन बनाये रखता है। उसने बेटे को बाप के विरुद्ध उठाया है। उसने हर राजा के अपने ही रक्त को अपने विरुद्ध बाग़ी और संदिग्ध बना छोड़ा है। मगध के राजपुत्र अजातशत्रु की तलवार, सदा अपने बाप श्रेणिक के सर पर झूल रही है। कोसलेश्वर अपनी दासी-रानी मल्लिका के पुत्र राजकुमार विडुढभ की प्राणघाती
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