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अभेद्य अन्धकार गुहा सामने खुल रही है। देख रहा हूँ, सहस्रों देव-देवांगना पंक्तिबद्ध चारों ओर घिर आये हैं । एक नानारंगी रत्न-स्तूप की तरह यहां का समस्त वैभव सामने आ खड़ा हुआ है । वह कातर है, प्रार्थी है, विरहाकुल है । · · · ये महिषियाँ, वल्लभाएँ, अप्सरियां । एकाग्र सब मुझे देख रही हैं । नीलोत्पला, हेमांगिनी, हिरण्यानी · · उदास क्यों होती हो! अपनी ओर देखो । जो यहां है, वही वहाँ है । भोग की वियोग-रात्रि बीत चुकी । सीमा विरह की होती है : मिलन की नहीं ! - - -
साक्षात्कार हुआ है कि, मृत्यु अभी विजित नहीं हुई है । भोग की इस सुलभ, स्निग्ध, सम्वादी धारा के भीतर भी वह अन्तर-व्याप्त है । मृत्यु की इस चुनौती के सम्मुख जरा भी मन उद्विग्न नहीं है । अचंचल चित्त से इसे देख रहा हूँ। इसकी सीमा को जानता हूँ। मैं इसमें से गुज़रूँ, या यह मुझमें से गुज़रे, कोई अन्तर नहीं पड़ेगा।
कोई उदासी नहीं, विषाद नहीं । भय नहीं, विरह-वेदना भी नहीं । बस उच्चाटित हूँ, उच्छिन्न हूँ, गमनोद्यत हूँ। अपार ऐश्वर्यों से भरा यह स्वर्ग मुझमें अन्तर्धान हो रहा है। मैं हूँ, हर भाषा से परे, एकमेव मैं हूँ। मैं सदा रहँगा । यह निश्चित है।
पर केवल होने के अतिरिक्त, क्या मेरी और कोई सार्थकता नहीं है ? कपूर की तरह बेमालूम उड़ रही इस काया के चहुँ ओर यह कैसी विराट् महिमा की ज्योति स्फुरित हो रही है ।
- एकाएक प्रकाण्ड तड़ित्-घोष से जैसे सोलहों स्वर्ग थर्रा उठे । समस्त ऐश्वर्यों की दीप्ति घायल हो उठी। क्षत्-विक्षत् । - स्वर्ग के पिण्डों में यह मर्त्य रक्त की धारा कैसी ? आश्चर्य । कहीं परम सत्य की मर्यादा भंग हुई है। . .
मेरे गरुड़ासन में बिजलियाँ तड़तड़ा रही हैं । सर्वनाश का यह कैसा हिल्लोलन है : मेरे चारों ओर । अगोचर में कहीं दूरातिदूर असंख्य चीत्कारें सुन रहा हूँ। मृत्य स्वीकार्य है, पर यह क्रन्दन असह्य है। हजारों वर्ष बाद, मेरा प्राण एक गहन मानवीय अनुकम्पा से आर्त हो उठा है । ' - 'पुरुरवा भील का आदिम प्राण · · ·। ___अन्तरिक्ष के अन्तराल में लपलपाती एक उद्दाम अग्नि की ज्वालाएँ । समवेत मंत्रोच्चारों के साथ उसमें आहुत होते अश्व, वृषभ, गौ, मनुष्य · · । सकल चराचर के भयभीत, त्रस्त प्राणों की ब्रह्माण्डव्यापी चीत्कारें । जो मुझे पुकार रही हैं, केवल मुझे । मैं कौन हूँ ? · · · मैं कौन हूँ ? ___ मैं ही अपनी अग्नि हूँ. - 'मैं ही अपनी आहुति । मैं आ रहा हूँ...। मैं आ रहा हूँ- - मैं आ रहा हूँ। . .
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