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________________ १९७ 'रूप और नामधारी चक्रवर्तित्व, अहंकार का होता है । अहं मिथ्या है, और उसका मिट जाना अनिवार्य है । अगर मैं हो सकता हूं, तो सोहम् का चक्रवर्ती, जो नाम-रूप से परे, स्व-निर्भर आत्म-स्वामी होता है । जिसकी सत्ता षटखण्ड पृथ्वी की विजय से सीमित नहीं और विक्रम-शिला की कायल नहीं । उस नामातीत की सत्ता, स्वायत्त होती है । उसका कोई प्रतिस्पर्धी सम्भव नहीं । सो उसे कोई हरा और मिटा नहीं सकता। ऐसा कोई अजातशत्रु चक्रवर्तित्व हो, तो वह मेरा हो सकता है।' 'तो फिर ससागरा पृथ्वी अनाथ और त्राणहीन ही रहेगी ? उस पर शासन कौन करे ? उसका परिचालन और परित्राण कौन करे ?' 'उसका सच्चा परिचालक, शासक और त्राता वही हो सकता है, जो पहले अपना पूर्ण स्वामी हो । जो पहले अपना स्वतन्त्र परिचालक और परित्राता हो !' 'वह कौन वर्द्धमान ?' ... 'वह जिसका चक्रवर्तित्व पृथ्वी और समुद्र की सीमाओं से बाधित नहीं । जो देश और काल के सीमान्तों को अतिक्रान्त करे । देश और काल, मात्र जिसके चक्र के आरे होकर रह जायें ।' 'और उसका साम्राज्य · · · ?' 'उसका साम्राज्य कण-कण, क्षण-क्षण और जन-जन के हृदय पर होता है। त्रिकालवर्ती जड़ और चेतन, हर पदार्थ के स्वभाव को वह पूरा जानता है, और समझता है। इसी से वह त्रिलोक के सकल चराचर का पूर्ण प्रेमी होता है। सो उनका अखण्ड जेता, त्राता और शास्ता होता है। जो सर्व का ज्ञाता हो, जिसकी आत्मा सर्व की वेदना से संवेदित हो, वही सर्व का स्वजन और प्रेमी, सर्वजयी और सर्व का शास्ता होकर रह सकता है।' तो वर्तमान लोक और काल में, तुम्हारे चक्रवर्तित्व का स्वरूप क्या हो सकता है ?' 'सच्चा चक्रवर्ती वह, जो अहं और राग-द्वेष के अनादिकालीन दुश्चक्र का भेदन करे, उसे उलट दे। जो वैर-विद्वेष के इस दुर्वृत्त से बाहर खड़ा हो सके, वही इसको तोड़ सकता है, इसका भेदन कर सकता है। जो पहल कर सके, उपोद्घात कर सके, नयी शुरूआत कर सके, जो सृष्टि के इस आदि-पुरातन दुश्चक्र को चूर-चूर करके, वस्तु और व्यक्ति मात्र को अपना स्वभावगत स्वराज्य प्रदान कर सके; जो स्वार्थ और अहम् पर आधारित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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