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सोम, फिर जल्दी ही आओगे । जब चाहो, आ जाना। समझे . . ! उधर देखो वातायन में । हिमवान का कोई शिखर जैसे नीलिमा में उभर रहा है . . ।'
सोमेश्वर किंचित् खोया-सा वातायन की ओर बढ़ गया। वैना ने झुक कर, आँखों से मेरे चरण-तट को तरल कर दिया। पद-नख को उसके मृदु ओंठ छुहला गये ।
'देवता, अनन्य रहो मेरे ।'
'मैं तो हूँ ही, वह । निश्चिन्त रहो, और मेरे कवि-मित्र को मुझ से अन्य न ममझो । जानोगी।'
'सोमेश्वर, वैनतेयी तुम्हारी प्रतीक्षा में है ।'
मोमेश्वर चौंका और वैना के साथ हो लिया। मैंने उन्हें माथ, समकक्ष जाते देखा। मन ही मन कहा मैंने :
'अदिति, तुम्हारी कोख से मेरा आदित्य जन्मे · · · !'
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