________________
अपने कुलजात विश्वामित्र, जैवलि और प्रतर्दन जैसे क्षत्रिय राजर्षियों के अभिमान से प्रमत्त और ब्राह्मणों के प्रति उनकी बढ़ती हुई तिरस्कार भावना को देख कर, रोहिताश्व का ब्रह्मतेज क्षुब्ध हो उठा। सो जान-बूझ कर उन्होंने एक उन्च राजकुलीन, क्षत्रिय कन्या को मोहित किया और ब्याहा, और मानो क्षात्रत्व को इस तरह चरणानत कर, उसमें अपने तेजस् को सींचा। सोमेश्वर उसी विद्रोही ब्रह्मतेज की सन्तान है ।
पिता कुटीरवासी, वनवासी, आत्म-तापस थे। आकाशवृत्ति पर गुजारा था। पिता की अन्तर्मुखता बढ़ती ही गई । उनसे पाया एकान्त आत्मज्ञान सोमेश्वर को तृप्त न कर सका। वह याज्ञवल्क्य की तरह, भीतर-बाहर के समन्वय द्वारा दिव्य जीवन उपलब्ध करना चाहता था। वह ब्रह्मानन्द को ही जीवनानंद बनाना चाहता था । - सो अपने जीवन को उसने अपने हाथ में लिया; तीव्र ज्ञानपिपासा से बेचैन हो किसी तरह तक्षशिला जा पहुंचा । विश्वविद्यालय के नियमानुसार, यह निर्धन अन्तेवासी, 'धम्मन्तवासिक' हो कर रहा । यानी दिन भर गुरु-सेवा करके शुल्क चुकाता था, और रात को गुरु-चरणों में विद्योपार्जन और निद्राजयी घनघोर अध्ययन । शास्त्र, शिल्प, शस्त्र तक की सारी विद्याओं पर उसने प्रभुता पायी है। वेद-वेदांग, उसकी साँसों में सहज उच्छ्वसित हैं । इस उज्ज्वल गौर, भव्य काय, ब्रह्म-क्षत्रिय युवा में एक निराले ही तेज, शांति और प्रज्ञा का समन्वय है। उसकी बड़ी-बड़ी पानीली आंखों में, एक रक्ताभ ख़मारी है। जैसे सोम-सुरा पी कर ही वह जन्मा है। ऊर्ध्वरेतस् का यह बिन्दुपुत्र, लोक और लोकोत्तर का सन्धि-पुरुष लगता है। उसके उन्नत ललाट पर, चिन्तन की तीन समान्तर रेखाएँ, तेज की शलाकाओं-सी पड़ी हैं। जैसे त्रिपुण्ड्र तिलक से अंकित भाल लेकर ही वह जन्मा है।
· · · इधर बहुत दिनों से सोमेश्वर आया नहीं था । और मैं बल्कि प्रतीक्षा में था उसकी, जो मेरे स्वभाव में विरल ही है। आज आया तो अतिरिक्त आल्हाद था उसके चेहरे पर। आँखों की सोम-सुरा अधिक गहरायी हुई थी। और एक उन्मुक्त विस्तार की भंगिमा थी, उसके लहराते केशों में। बोला कि इधर बहुत भीतर डूबा-उतराया है, अपने और सृष्टि के रहस्य को थाहने की उदग्रता से व्याकुल हो कर। और एक कविता इस आप्लावन और मंथन में से उसने लिखी है, कोई तट पाने की विकलता में से। सोमेश्वर स्वभाव से ही कवि है, और उसका पूरा व्यक्तित्व कविता के लालित्य और तेजस्व से दीप्त है । उसकी देहरेखा में भाव और सौन्दर्य की एक अनोखी तरलता और प्रवाहिता है। मैंने उससे कविता सुनाने का अनुरोध किया। वह तो छलाछल भरा बैठा था,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org