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________________ 94 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 क्षमा की साक्षात् प्रतिमूर्ति होता है तथा सदैव परोपकार में लगा रहता है। यहाँ तक कि वह राग-द्वेष से ऊपर उठकर गुरु कहलाने की भी इच्छा नहीं रखता। इसलिए रविदास ऐसे सतगुरु के दर्शन पर बलिहारी जाते हैं। उनके चरण धोते हैं तथा चरणों में शीश झुकाते हैं, क्योंकि सतगुरु मिल जाता है तो वह जन्म-जन्म के कर्म बंधन को काट डालता है। इस वाणी में रविदास ने भावातिरेक होकर इन्हीं भावों को प्रकट किया है - आज दिवस लेउं बलिहारी, मेरे ग्रिह आया राजा राम जी का प्यारा | आंगन बगड़, भुवन भयौ पावन, हरिजन बैठे हरिजस गावन । करौ डंडोत अरू चरन पखारौं, तन-मन-धन संतन पर वारौं । कथा करें अरू अरथ विचारैं, आप तरैं औरति को तारें ।। ( रविदास) रविदास का कहना है कि सतगुरु का मिलाप होने पर जो सुख प्राप्त होता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। गुरु से भेंट होने पर जीव के प्रारब्ध कर्म कट जाते हैं तथा उसका वज्र कपाट खुल कर उसे प्रेमाभक्ति प्राप्त हो जाती है। रविदास कहते हैं - 'रवि प्रगास रजनी जूथा, गति जानत सम संसार पारस मानों तांबो छुए, कनक होत नहीं बार।। परम परस गुरु भेंटीए, पूरब लिखत लिलाट । उनमन मन मन ही मिलै, छुटकत बजर कपाट।। ( रविदास) जीव संशय में पड़कर सांसारिक बंधनों में लिपटा रहता है, उसे सतगुरु ही मुक्त कर सकता है। दादूदयाल इस संबंध में कहते हैं सतगुरु मिलें न संसार जाई, ये बंधन सब देइँ छुड़ाई। तब दादू परम गति पावै, सो निज मूरति माहिं लखावै ।। ( दादूदयाल) संत चरनदास के अनुसार भी सतगुरु जगत की समस्त व्याधियों से मुक्ति दिलाता है, ईश्वर भक्ति में प्रेम उत्पन्न करता है तथा जीव को सभी दुःखों से दूर करता है - Jain Educationa International 'गुरुही के परताप सूं, मिटै जगत की ब्याध । राग दोष दुःख ना रहे, उपजे प्रेम अगाध ।' (चरनदास) गुरु सदैव शिष्य का हित साधने वाला, उसका मित्र तथा रहस्य की बातें बताने वाला शिवदयाल सिंह जी इस भाव को इन शब्दों में प्रकट करते हैं - For Personal and Private Use Only स्वामी www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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