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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 89
हिन्दी-भक्ति-साहित्य में गुरु का स्वरूप एवं महत्त्व
___ डॉ. किशोरीलाल रैगर
गुरु वह तत्त्व है जो अज्ञान का नाशकर परमात्म-पद से हमारा साक्षात्कार कराता है। सिद्ध एवं नाथों के साथ हिन्दी के भक्तिकालीन सन्त कवियों कबीर, नानक, रविदास, दादूदयाल, चरनदास, स्वामी शिवदयालसिंह, मीरां, सांई बुल्लेशाह, तुलसीदास आदि के काव्यों में निहित गुरु-महिमा को लेखक ने निपुणता से संयोजित किया है। आलेख से गुरु की उत्कृष्टता का सहज ही बोध होता है। -सम्पादक
मनुष्य जन्म लेते ही सीखने की ओर प्रवृत्त होता है। संसार में वह जो कुछ भी ग्रहण करता है, . सीखता है। इसके लिए उसे गुरु की आवश्यकता होती है। वैसे तो संसार के जीवों की प्रथम गुरु उसकी जन्मदात्री 'माँ' होती है, क्योंकि बच्चा जन्मते ही माँ के सम्पर्क में आता है। अतः माँ ही उसे संसार रूपी पाठशाला में पहला पाठ पढ़ाती है। लेकिन जब बात अध्यात्म या भक्ति की आती है तो वहाँ गुरु का अर्थ एक विशिष्ट रूप में लिया जाता है। वेद, उपनिषद्, बौद्ध, जैन, सिद्ध, नाथ साहित्य में गुरु की महत्ता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। सामान्य अर्थ में 'गुरु' वह है जो जीव को सांसारिक बंधनों से दूर कर उसे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में भक्ति की जो पावन सरिता प्रवाहित हुई उसमें डुबकी लगाकर कई भक्त संसार सागर से पार हो गये। सवाल उठता है कि सांसारिक माया-मोह में डूबे जीव को पार लगाने वाला कौन है ? निःसन्देह वह गुरु ही है। चाहे भक्ति की सगुण धारा हो या निर्गुण धारा, दोनों पंथों में ही गुरु के स्वरूप और उसके माहात्म्य पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है।
हिन्दी के निर्गुण साहित्य की परम्परा सिद्ध, नाथों से प्रारम्भ होकर संतों तक आती है। सिद्धों में सरहपा, शबरपा, लुहपा, डोम्भिपा, कुक्कुरिपा आदि कई प्रसिद्ध सिद्ध कवि हुए हैं। सिद्ध कई गुह्य विद्याओं के ज्ञाता थे। उनको सीखने के लिए समर्थ गुरु की अत्यन्त आवश्यकता पडती थी, क्योंकि वह अध्यात्म पथ पर आगे ले जाता है। सरहपा के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने गुरु-सेवा को महत्त्व दिया।' साधना का मार्ग अत्यन्त जटिल होता है, उसमें भटकने से बचने के लिए साधक को गुरु के पास जाना ही पड़ता है। सिद्ध कवि लुईपा ने कहा है - लुई भणई गुरु पुच्छेउ जाण। इसी तरह नाथ साहित्य में भी गुरु के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन है।
भक्तिमार्ग में अज्ञानी जीव को परमात्मा से मिलाने का सच्चामार्ग गुरु ही बता सकता है। गुरु जीव के अन्दर परमात्मा के प्रति प्रेम पैदा करके उनसे एकाकार होने का मार्ग बताता है, क्योंकि गुरु की कृपा से ही भक्त
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