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________________ 1416 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 | बराबर वजन नहीं देते। जैसे खड़े रहते समय किसी एक तरफ थोड़ा झुक जाते हैं। बैठते समय सीधे नहीं बैठते। सोते समय हमारे पैर सीधे और बराबर नहीं रहते। स्वतः किसी एक पैर को दूसरे पैर की सहायता और सहयोग लेना पड़ता है। फलतः पैर के ऊपर दूसरा पैर चला जाता है। ऐसा क्यों होता है? दोनों पैरों के बराबर न होने अर्थात् एक पैर बड़ा और दूसरा पैर छोटा होने से प्रायः ऐसा होता है। अतः प्रत्येक साधक को पैरों, मेरुदण्ड एवं गर्दन को संतुलित करने का ढंग, जो बहुत ही सरल है अवश्य सीख लेना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह स्वयं कर सके। जिससे एडी से लगाकर गर्दन तक स्नायु संबंधित रोगों में तुरन्त राहत मिलती है। 26. नाभि संतुलन का महत्त्व- यदि नाभि अपने स्थान से अन्दर की तरफ हो जाए, उस व्यक्ति का वजन दिन प्रतिदिन घटता चला जाता है और यदि किसी कारण नाभि अपने स्थान से बाहर की तरफ हो जाती है तो शरीर का वजन न चाहते हुए भी अनावश्यक बढ़ने लगता है। किसी कारण नाभि यदि अपने स्थान से ऊपर की तरफ चढ़ जाती है तो खट्टी डकारें, अपच आदि की शिकायतें रहने लगती हैं। कब्जी भी हो सकती है। परन्तु यदि नाभि अपने स्थान से नीचे की तरफ चली जाती है तो दस्तों की शिकायत हो जाती है। इसी प्रकार नाभि कभी दायें, बायें अथवा तिरछी दिशाओं में भी हट जाती है, जिससे शरीर में अनेक प्रकार के रोग होने लगते हैं। सारे परीक्षण एवं पेथालोजिकल टेस्ट करने के पश्चात् भी यदि रोग पकड़ में नहीं आता हो तो, ऐसे में नाभि केन्द्र को अपने केन्द्र में लाने से तुरन्त राहत मिलने लग जाती है। उपसंहार स्वास्थ्य-विज्ञान जैसे विस्तृत विषय को सम्पूर्ण रूप से इस लेख में अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है। फिर भी गत वर्षों के अनुभव से मैंने जो परिणाम देखे उसके आधार पर ही कथन करने का मेरा प्रयास है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि उपर्युक्त तथ्यों का महत्त्व समझकर यदि साधक अपने विवेक से सजगता पूर्वक स्वयं के लिए आवश्यक नियमों का पालन करना प्रारम्भ कर दे तो अनेक रोगों से सहज बच सकता है, जिसके लिए उपचार करवाते समय उसको अपने व्रतों में दोष लगाकर प्रायश्चित्त लेना पड़ता है तथा आचरण करने से साधक बिना दवा स्वस्थ एवं निर्दोष स्वावलम्बी जीवन जी सकता है। मृत्यु के लिए सौ सों के काटने की आवश्यकता नहीं होती। एक सर्प का काटा व्यक्ति भी कभी-कभी मर सकता है। ठीक उसी प्रकार कभी-कभी बहुत छोटी लगने वाली हमारी गलती अथवा उपेक्षावृत्ति भी भविष्य में रोग का बहुत बड़ा कारण बन सकती है। “आरोग्य आपका", "स्वस्थ रहें या रोगी-फैसला आपका" तथा "शरीर स्वयं का चिकित्सक" जैसी पुस्तकें अध्ययन करने से अन्य संबंधित जानकारियाँ एवं शंकाओं के समाधान प्राप्त किए जा सकते हैं। चोरडिया भवन, जालोरी गेट के बाहर, जोधपुर-342003 (राज.) फोन : 0291-2621454, 94141 34606 (मोबाइल) E-mail: cmchordia.jodhpur@gmail.com Website: www.chordiahealthzone.com Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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