________________
जिनवाणी
|| 10 जनवरी 2011 || उनकी सुषुम्ना नाडी की सुप्त शक्तियाँ स्वयं जागृत हो जाती हैं। यही कारण है कि अन्य जीवों को मनुष्य की अपेक्षा स्नायु सम्बन्धी रोग कम होते हैं। यदि साधक भी रीढ़ के विविध घुमावदार आसनों को नित्य विधिपूर्वक करलें तो उनमें भी सुषुम्ना शक्तियाँ जागृत होने लगती हैं, ऊर्जा चक्र सक्रिय होने लगते हैं एवं स्नायु संस्थान ताकतवर होने से, स्नायु संबन्धी रोगों के होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं। इस व्यायाम को नियमित करने से नाभि अपने स्थान पर रहती है। कब्ज, गैस, थकावट, आलस्य, अनिद्रा,
मोटापा, मधुमेह एवं स्नायु संबंधी अन्य रोगों में लाभ होता है। मेरुदण्ड के मणके अपने स्थान पर रहते हैं। 19. उषापान- बिना कुछ खाए अथवा पिए एवं दांतुन किए बिना, प्रातःकाल अपने पेट की क्षमतानुसार सर्व
प्रथम भर पेट पानी पीने को उषापान कहते हैं। उषापान से आमाशय और आंतों की सफाई होती है। जिससे पाचन संबंधी रोग होने की संभावनाएँ कम हो जाती हैं और यदि असावधानी के कारण रोग हो गए हों तो भी बवासीर, सूजन, संग्रहणी, ज्वर, उदर रोग, कब्ज, आंत्ररोग, मोटापा, गुर्देसंबंधी रोग, यकृत रोग, नासिका से रक्त स्राव, कमर दर्द, आंख, कान आदि विभिन्न अंगों के रोगों से राहत मिलती है। इससे नेत्र
ज्योति में वृद्धि एवं बुद्धि निर्मल होती है। 20. शिवाम्बु सेवन से लाभ- दुनिया में रोग-मुक्त करने के लिए हजारों दवाइयां उपलब्ध हैं, जिनका रोगों
की रोकथाम, उपचार एवं परहेज के रूप में सेवन किया जाता है। सभी दवाओं का शरीर के अंगों पर अलग-अलग अच्छा अथवा दुष्प्रभाव पड़ता है। आंख के रोगों की दवा कान में नहीं डाली जा सकती। नाक में डालने वाली दवा मुंह में नहीं ली जा सकती। परन्तु शिवाम्बु स्वयं के द्वारा स्वयं के शरीर से रोगों की आवश्यकतानुसार निर्मित जन्म से उपलब्ध ऐसी दवा है, जिसका प्रयोग चाहे कान हों या आंख, नाक हो या मुंह, त्वचा के रोग हों अथवा शरीर की आन्तरिक शुद्धि के लिए दिया जाने वाला एनिमा ही क्यों न हों,सभी में स्वस्थ रहने एवं रोग मुक्ति हेतु बेहिचक प्रयोग किया जा सकता है। शिवाम्बु के सेवन से शरीर की रोग प्रतिकारात्मक क्षमता बढ़ती है, जिससे वायरस एवं मौसम परिवर्तन संबंधी रोग होने की संभावनाएँ कम हो जाती हैं। शिवाम्बु क्षारीय प्रकृति का होने से इसके सेवन से आंतों एवं रक्त की सफाई होने में मदद मिलती है। अतः साधक को प्रातःकाल मल-त्याग के पूर्व शिवाम्बु सेवन करना चाहिए। उसके 15-20 मिनट पश्चात् उषापान कर मल त्याग हेतु जाने से कब्जी, गैस आदि रोग होने की संभावनाएँ कम रहती हैं। भोजन के पश्चात् शिवाम्बु का सेवन करने से पाचन अच्छा होता है। हिलते हुए दांतों को पुनः मजबूत करने के लिये तथा दांतों संबंधी अन्य रोगों में ताजे शिवाम्बु को मुंह में भरकर दिन में तीन-चार बार पंद्रह बीस मिनट घुमाने से हिलते हुए दांत ठीक हो जाते हैं। सांप-बिच्छु अथवा शरीर में अन्य जहर फैलने पर शिवाम्बु पीने से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है। आंखों के सभी रोगों में, नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए, चश्मे के नम्बर कम करने के लिए, रोजाना तीन-चार बार आंखों में ताजे शिवाम्बु को तीन चार मिनट ठंडा होने के पश्चात् डालने से काफी लाभ होता है। यदि किसी साधक
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org