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जिनवाणी
10 जनवरी 2011 विकारनाशक शक्ति पैदा करती हैं। इससे आंतों में अम्ल क्षार का संतुलन एवं शरीर में फासफोरस कैलशियम का संतुलन बना रहता है। नेत्र ज्योति बढ़ती है तथा शरीर के सभी आवश्यक तत्त्वों का पोषण होता है। हृदय रोग, मस्तिष्क विकार, आंखों के विकार आदि अनेक व्याधियां दूर होती हैं। प्रातः कालीन सूर्यकिरणें जीवनी शक्ति बढ़ाती हैं, स्नायु दुर्बलता कम करती हैं, पाचन और मल निष्कासन की क्रियाओं को बल देती हैं, पेट की जठराग्नि प्रदीप्त करती हैं, रक्त परिभ्रमण संतुलित रखती हैं, हड्डियों को मजबूत बनाती हैं, रक्त में कैलशियम, फासफोरस और लोहे की मात्रा बढ़ाती हैं, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव बनाने में सहयोग करती हैं।
10. ध्यान- ध्यान शरीर, मन एवं मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का अच्छा माध्यम है। ध्यान से आभा मण्डल शुद्ध होता है, हानिकारक तरंगें दूर होती हैं। ध्यान की साधना शांत, एकान्त, स्वच्छ एवं निश्चित स्थान पर निश्चित समय करने से ज्यादा लाभ होता है। ध्यान के लिए मौन आवश्यक होता है। पहले शरीर की स्थिरता, फिर दृढ़ता और धैर्य के बिना ध्यान संभव नहीं हो सकता।
11. आत्म-विकारों की शुद्धि- आत्म-विकारों को दूर करने हेतु साधक को अपना सोच सकारात्मक, पूर्वाग्रहों से रहित, 'गुणिषु प्रमोदं' से युक्त रखना चाहिए। भौतिक कामनाओं से निर्लिप्त रहने का अभ्यास करना चाहिए। नियमित स्वाध्याय, ध्यान, मौन एवं कायोत्सर्ग में अधिकाधिक अपने अमूल्य समय का सदुपयोग करना चाहिए। व्रतों में लगे दोषों की नियमित समीक्षा एवं गर्हाकर प्रमोदभाव से प्रायश्चित्त लेना चाहिए। स्वाध्याय मात्र वाचना और पर्यटना तक ही सीमित न हो, अपितु उसके द्वारा की जाने वाली प्रत्येक प्रवृत्ति तथा उच्चारित शब्दों का अनेकान्त दृष्टि से चिंतनकर उसके मर्म की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। उसके अनुरूप अपने आचरण की समीक्षा करनी चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सरलता, सहजता, संतोष, विनय, सहनशीलता, निर्लिप्तता आदि गुण विकसित होते हैं। जिससे साधक आत्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ रहता है।
12. मुस्कान के लाभ - प्रातः 15-20 मिनट मुस्कुराता हुआ चेहरा रखने का अभ्यास करने से मानसिक तनाव, आवेग, अधीरता, भय, चिंता आदि दूर होते हैं। सकारात्मक सोच विकसित होता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ सक्रिय होती हैं जिससे शुद्ध हारमोन्स का निर्माण होता है। मानसिक संतुलन बना रहता है। दुःखी, चिन्तित, तनावग्रस्त, भयभीत, निराश, क्रोधी आदि मुस्करा नहीं सकते और यदि उन्हें किसी भी कारण से चेहरे पर मुस्कराहट आती है तो तनाव, चिंता, भय, दुःख, क्रोध आदि उस समय उनमें रह नहीं सकते, क्योंकि दोनों एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के होते हैं। अतः किसी भी आकस्मिक स्थिति में रोग सहनशक्ति के बाहर हो तथा दवा लेना आवश्यक हो उस समय चन्द मिनटों तक मुस्कराता चेहरा बनाने से तुरन्त राहत मिलती है। फिर चाहे निम्न या उच्च रक्तचाप अथवा मधुमेह आदि कोई भी रोग क्यों न हो, दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती।
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