SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 403] का वृ. इति. भाग 2, पृ. || 10 जनवरी 2011 | जिनवाणी 403 34. बृहत्कल्प सूत्र, प्रथम उद्देश, प्रतिबद्धशय्यासूत्र (जै.सा.का वृ. इति. भाग 2, पृ. 241) 35. अण्णोणणणुकूलाओ अण्णोण्णाहिरक्खणाभिजुत्ताओ। गयरोसवेरमायासलज्जमज्जादकिरियाओ।। मूलाचार 4.188 36. ज्ञानार्णव 12.57 37. हिस्ट्री ऑफ जैन मोनासिज्म, पृ. 473 38. मूलाचार 4.189 39. ण य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्सगमणिज्जे। गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज्ज ।।- मूलाचार 4.192 40. रोदणण्हावणभोयजपयणं सुत्तं च छव्विहारंभे । __विरदाण पादमक्खण धोवणगेयं च ण य कुज्जा ।। - मूलाचार 4.193 41. असिमषिकृषि वाणिज्यशिल्पलेखक्रियाप्रारम्भास्तान् जीवघातहेतून् । - मूलाचार वृत्ति 4.193 42. कुन्द मूलाचार 4.74 43. गच्छाचार पइन्ना 113 44. वही 110 45. तिण्णि व पंच व सत्त व अज्जाओ अण्णमण्णरक्खाओ। थेरीहिं सहंतरिदा भिक्खाय समोदरन्ति सदा । मूलाचार 4.194 46. मूलाचार, 4.194 की वृत्ति 47. सुत्तपाहुड श्रतुसागरीय टीका 22 तथा दौलत क्रियाकोश 48. गच्छाचार पइन्ना, 129-130 49. मूलाचार 5.80-82, वृत्तिसहित 50. पंच छ सत्त हत्थे सूरी अज्झावगो य साधु य । ___ परिहरिऊण ज्जाओ गवासणेणेव वंदति ॥ - मूलाचार 4.195 वृत्ति सहित 51. मूलाचार 4.179 वृत्ति सहित 52. वही 4.177 वृत्ति सहित 53. तासिं पुण पुच्छाओ इक्किस्से णय कहिज्ज एक्को दु। ___ गणिणी पुरओ किच्चा जदि पुच्छइ तो कहेदव्वं ।। वही, 4.178 वृत्ति सहित 54. मूलाचार 4.180, 10.61 वृत्ति सहित 55. मूलाचार, 331 56. मूलाचार 10.62 57. भगवती आराधना, गाथा 334, 338 58. मूलाचार 4.183, 184, बृहत्कल्प भाष्य 2050 -प्रोफेसर, जैन दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी-221010 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy