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जिनवाणी
10 जनवरी 2011
सकतीं।' इस सबके बावजूद श्वेताम्बर परम्परा में स्त्रियों को मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी माना गया है। बौद्ध परम्परा में भी स्त्री सम्यक् सम्बुद्ध नहीं हो सकती।'
आर्यिका के लिए प्रयुक्त शब्द
वर्तमान समय में सामान्यतः दिगम्बर परम्परा में महाव्रत आदि धारण करने वाली दीक्षित स्त्री को 'आर्यिका' तथा श्वेताम्बर परम्परा में इन्हें 'साध्वी' कहा जाता है। दिगम्बर प्राचीन शास्त्रों में इनके लिए आर्यिका," आर्या, " विरती, " संयती, " संयता, " श्रमणी " आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं । प्रधान आर्यिका को 'गणिनी" तथा संयम, साधना एवं दीक्षा में ज्येष्ठ वृद्धा आर्यिका को स्थविरा (थेरी ) " कहा गया है।
आर्यिकाओं का वेष
आर्यिकाएँ निर्विकार, श्वेत, निर्मल वस्त्र एवं वेष धारण करने वालीं तथा पूरी तरह से शरीर - संस्कार (साज-शृंगार आदि) से रहित होती हैं। उनका आचरण सदा अपने धर्म, कुल, कीर्ति एवं दीक्षा के अनुरूप निर्दोष होता है।" वसुनन्दी के अनुसार- आर्यिकाओं के वस्त्र, वेष और शरीर आदि विकृति से रहित, स्वाभाविक-सात्त्विक होते हैं अर्थात् वे रंग-बिरंगे वस्त्र, विलासयुक्त गमन और भूविकारकटाक्ष आदि से रहित वेष को धारण करने वाली होती हैं। जो किसी भी प्रकार का शरीर - संस्कार नहीं करतीं- ऐसीं ये आर्यिकायें क्षमा, मार्दव आदि धर्म, माता-पिता के कुल, अपना यश और अपने व्रतों के अनुरूप निर्दोष चर्या करती हैं। "
सुत्तपाहुड तथा इसकी श्रुतसागरीय टीका में तीन प्रकार के वेष (लिंग) का कथन है- 1. मुनि, 2. ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट श्रावक - ऐलक एवं क्षुल्लक तथा 3. आर्यिका " । तीसरा लिंग (वेष ) स्त्री (आर्यिका ) का है। इसे धारण करने वाली स्त्री दिन में एक बार आहार ग्रहण करती है। वह आर्यिका भी हो तो एक ही वस्त्र धारण करे तथा वस्त्रावरण युक्त अवस्था में ही आहार ग्रहण करे। "
वस्तुतः स्त्रियों में उत्कृष्ट वेष को धारण करने वाली आर्यिका और क्षुल्लिका- ये दो होती हैं। दोनों ही एक बार आहार लेती हैं। आर्यिका मात्र एक वस्त्र तथा क्षुल्लिका एक साड़ी के सिवाय ओढ़ने के लिए एक चादर भी रखती हैं। भोजन करते समय एक सफेद साड़ी रखकर ही दोनों आहार करती हैं। अर्थात् आर्यिका के पास तो एक साड़ी है, पर क्षुल्लिका एक साड़ी सहित किन्तु चादर रहित होकर आहार करती है। 22 भगवती आराधना में भी क्षुल्लिका का उल्लेख मिलता है। 23
भगवती आराधना में सम्पूर्ण परिग्रह के त्यागरूप में औत्सर्गिक लिंग में चार बातें आवश्यक मानी गई हैं- अचलता, केशलोच, शरीर-संस्कार-त्याग और प्रतिलेखन (पिच्छी) 24 किन्तु स्त्रियों के अचेलता (नग्नता) का विधान न होते हुए भी अर्थात् तपस्विनी स्त्रियाँ एक साड़ी मात्र परिग्रह रखते हुए भी उनमें औत्सर्गिक लिंग माना गया है। अर्थात् उनमें भी ममत्व त्याग के कारण उपचार से निर्ग्रन्थता का
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