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| 10 जनवरी 2011
जिनवाणी
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देंगे।
दीक्षा की आज प्रथम रात थी, मेघ मुनि का आसन द्वार के पास लगा था । अन्धकार के कारण मुनियों के पैर व रजोहरण के स्पर्श से मेघ मुनि की निद्रा भंग हो गई। चिन्तन चिन्ता में बदल गया। मैं जब राजकुमार था तब ये मुनि-जन मेरा सत्कार और सम्मान करते थे, मुझे प्रेम करते थे। आज मुनि बनते ही यह स्थिति है किठोकरें खानी पड़ रही हैं । श्रेयस्कर यही है कि प्रातः महावीर को ये सारे वस्त्र-पात्र सँभला कर गृहस्थ बन जाऊँ। रात भर इस प्रकार मानस में उधेड़बुन चलती रही, प्रातः महावीर के चरणों में पहुँचे । सर्वज्ञ सर्वदर्शी महावीर ने उनको रात के समय मानस में उठी विचार-लहरियों पर प्रकाश डालते हुए बतलाया कि मेघ तू पूर्वभव में कौन था, और किस प्रकार के कष्ट तूने सहन किये और अब तनिक से कष्ट से घबरा गया है। मेघ का मानस दुरस्त हो जाता है। विवेक का निर्मल नीर तथा चिन्तन का खाद्य मिलते ही उसने प्रतिज्ञा ग्रहण की कि आज से मैं नेत्रों के अतिरिक्त सर्व-शरीर से सन्तों की सेवा हेतु समर्पित करता हूँ। कुशल नाविक
सद्गुरु जीवन-रूपी नौका का सफल और कुशल नाविक है। जो संसार रूपी सागर में से तथा क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी तूफान में से सकुशल पार पहुंचा देता है । एतदर्थ ही सद्गुरु की महिमा का बख़ान करते हुए एक वैदिक ऋषि ने कहा है
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै सदगुरवे नमः।। महत्त्व- भगवान से भी सद्गुरु का महत्त्व अधिक है। एक वैदिक ऋषि ने तो यहाँ तक कहा है- भगवान यदि रुष्ट हो जाय तो सद्गुरु बचा सकता है, पर सद्गुरु रुष्ट हो जाय तो भगवान की भी शक्ति नहीं जो उसे उबार
सके।
हरी रुष्टे गुरुस्त्राता, गुरी रुष्टे न च शिवः।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन, गुरुमेव प्रसादयेत्।। दुर्लभ क्या?
___ एक जिज्ञासु ने एक विचारक से पूछा- इस संसार में दुर्लभ क्या है? 'किं दुर्लभं?' विचारक ने गंभीर चिन्तन के पश्चात् उससे कहा-अन्य वस्तुएँ मिलनी सरल है, सहज है, पर सद्गुरु का मिलना कठिन है, कठिनतम है 'सद्गुरवस्त्रिलोके' । वस्तुतः सद्गुरु का मिलना बड़ा ही कठिन है। एक सज्जन ने बताया कि भारतवर्ष में इस समय नब्बे लाख के लगभग गुरुओं की फौज है, जिनके पास रहने के लिए भव्य भवन हैं, फिरने के लिए हाथी, घोड़े और कारें हैं, और मौज करने के लिए तिजोरियाँ भरी पड़ी हैं? क्या वस्तुतः वे गुरु हैं? ये गुरु कैसे?
एक दार्शनिक जा रहा था, गगनचुम्बी मठों को देखकर उसने सामने आते हुए एक सज्जन से पूछा- ये
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