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________________ 347 प्रश्न: प्रश्न: उत्तर: || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी तीन योगों से सत्य, करणों से सत्य, क्षमावान, वैराग्यवान, मन में सम भाव धारण करना, वचन में समता भाव पूर्वक उच्चारण करना तथा काया से समता को क्रियान्वित करना, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन, किसी भी प्रकार की वेदना हो, उसे समभाव से सहन करना तथा मारणांतिक कष्ट का अनुभव हो, तब भी संयम का पालन करना। श्रमणों के सत्यव्रत की 5 भावनाएँ कौन-कौनसी हैं? उत्तरः- (1) वाणी-विवेक (2) क्रोध-त्याग (3) लोभ-त्याग, (4) भय-त्याग, (5) हास्य-त्याग। वाणी-विवेक अर्थात् सोच समझ कर भाषा का प्रयोग करना। क्रोध अर्थात् गुस्सा न करना। लोभ-त्याग अर्थात् लालच में न फंसना। भय-त्याग अर्थात् निर्भीक रहना। हास्य-त्याग अर्थात् हँसी मजाक न करना। इसके अतिरिक्त इसी प्रकार की अन्य प्रशस्त भावनाओं से सत्यव्रत की सुरक्षा होती है। अस्तेय व्रत की दृढ़ता एवं सुरक्षा के लिए कौनसी भावनाएँ बतलाई गई हैं? (1) सोच-विचार कर वस्तु की याचना करना। (2) आचार्य आदि की अनुमति से भोजन करना। (3) परिमित पदार्थ स्वीकार करना। (4) पुनःपुनः पदार्थों की मर्यादा करना। (5) साधर्मिक (साथी श्रमण) से परिमित वस्तुओं की याचना करना। प्रश्नः- उत्तराध्ययन सूत्र में श्रमण के लिए 5 महाव्रतों की 25 भावनाओं के विषय में क्या कहा गया है? जो श्रमण 5 महाव्रतों की 25 भावनाओं में सदा यत्नशील रहता है, मनोयोगपूर्वक उनका गहराई से अनुचिन्तन करता रहता है, वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता। इन भावनाओं के अनुचिन्तन से महाव्रतों में स्थिरता आती है। मनोबल पूर्ण रूप से सुदृढ़ होता है। मन में पवित्र संस्कार सुस्थिर होते हैं। रात्रि के अन्तिम प्रहर से सूर्य उदय तक साधु की दिनचर्या क्या होती है? उत्तरः- साधु की दिनचर्या रात्रि के अन्तिम प्रहर से प्रारम्भ होती है। वह निद्रा को त्यागकर, पंच परमेष्ठी स्मरण, आत्मनिरीक्षण तथा गुरु के चरणों में नमन करता है। यदि कुस्वप्न आता है तो उसकी आलोचना करता है। फिर ध्यान और स्वाध्याय करता है। अंत में प्रतिक्रमण कर वह वस्त्र, रजोहरण आदि की प्रतिलेखना करता है। दिन के चौथे प्रहर में साधु की दिनचर्या क्या होती है? उत्तरः- स्वाध्याय कर वह गुरु को वन्दन करता है फिर गोचरी में प्राप्त भोजन का सेवन करता है। तदनन्तर गुरु को वंदन कर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय-प्रतिक्रमण आदि कर संथारा पोरसी पढ़कर सो उत्तर: प्रश्न: प्रश्न: Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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