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________________ 334 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 जीवन शैली को पुनर्जीवित करने से अब कुछ श्रावकों के घरों में पुनः प्रासुक धोवन की उपलब्धता शुरू हुई है। प्रासुक पानी की उपलब्धता, श्रमण वर्ग के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है। बिना आहार के रह जाना, श्रमणों के लिए भयंकर समस्या नहीं मानी जाती है। लेकिन बिना प्रासुक पानी के तो उनका जीवन ही संकट में पड़ जाता है। धोवन की अनुपलब्धता के मद्दे नजर तो कुछ श्रमणों ने बोतल बंद पानी (मिनरल पानी) को प्रासुक घोषित कर दिया था । इससे साधुओं की कठिनाइयाँ काफी हद तक दूर हो गई हैं। लेकिन हमारे नये प्रयोंगों से यह सिद्ध हुआ है कि मिनरल पानी प्रासुक नहीं होता है, भले ही वह बैक्टेरिया शून्य क्यों न हो। अतः मिनरल पानी के मिथ्या प्रचार से बचना चाहिए। आगम और विज्ञान सम्मत तो श्रावक का यही आचरण शुद्ध है कि घर-घर में धोवन पानी का उपयोग बढ़े। जब शुद्ध पालना वाले और क्षीण कषाय वाले श्रमण व्याख्यान फरमाते हैं, तो उनका प्रभाव भी ज्यादा गहरा होता है। कहा भी गया है कि प्रकाश का मार्ग बताने वालों को पहले स्वयं को अंधेरों से बाहर आना होगा। फिर भी नये समण वर्ग को आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत सारी प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारियाँ सौंपी जा सकती हैं। इस प्रकार आज के जमाने में शुद्ध आगम-सम्मत श्रमणाचार की उपयोगिता अधिक बढ़ गई है। उसको सम्यक् रूप से पालने में जो बाधाएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, उनको दूर करने के लिए व्रतधारी श्रावकों को आगे आकर, समुचित धर्म दलाली का पुण्य अर्जन करते रहना चाहिए । दृढ़ श्रावक समाज ही, श्रमणों के आचार को शुद्ध रखने में सहायक हो सकता है। और शुद्ध श्रमणाचार ही श्रावक के आगार धर्म का आदर्श और प्रभावी संबल होता है। उसी से अध्यात्म और नैतिक नेतृत्व की सही दिशा मिलती है। इसी से संघ की कीर्ति बढ़ती है। ऐसा समझ में आता है कि आगम-सम्मत मूल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो वैज्ञानिक ढंग से श्रमणों की आचार-संहिता बनाई गई थी, वह आज भी तर्क संगत, व्यावहारिक और प्रासंगिक है। उसकी वैज्ञानिकता को समझते हुए, श्रावक संघ को यह प्रयास करना चाहिए कि उसकी पालना में जो-जो बाधाएँ दिखाई दे रही हैं, उनका सरल निराकरण किया जाय। आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में हमारे समाज की बढ़ती आवश्यकताओं और सम्भावनाओं की पूर्ति के लिए एक नये श्रावक वर्ग का व्यापक संगठन अपेक्षित है, जो श्रावक और श्रमण के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करते हुए आधुनिक वाहनों, दूर संचार आदि के नये साधनों और तकनीकियों का समुचित उपयोग करने के लिए सीमित स्वतंत्रता रखता हो । -कमानी सेन्टर, द्वितीय माला, बिस्टापुर, जमशेदपुर- 831001 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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