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10 जनवरी 2011 जिनवाणी
327 19. उत्तराध्ययन सूत्र, 9.48-49 20. लोभंसन्तोसओ जिणे। -दशवकालिक 8.39 एवं लोभविजएणं संतोसंजणयइ।- उत्तराध्ययन सूत्र 29.70 21. आवश्यक सूत्र पाँचवाँ और छठवाँ व्रत 22. व्याख्याप्रज्ञप्ति 15.55 23. समवायांग 1.1 स्थानांग 1.1 24. शास्त्री देवेन्द्र मुनि : जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ.-87 25. संसारत्था उजे जीवा दुविहा ते वियाहिया। तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं।- उत्तराध्ययन 36.68 26. उत्तराध्ययन (36.70) में अग्नि और वायु को अपेक्षा से गतिशील माना है तथा स्थावर में पृथ्वी, जल और वनस्पति
को लिया गया है। उत्तराध्ययन 36.73-76, प्रज्ञापना (1.24) में पृथ्वीकाय के 40 भेद बताये गये हैं। मूलाचार में पृथ्वी के 36 भेद
और तिलोयपण्णत्ति में 16 भेद बताये हैं। 28. उत्तराध्ययन 36.86, मूलाचार (गाथा 210) में 8 भेद बताये गये हैं। 29. नफा-नुकसान, जयपुर 9-10 फरवरी, 2005 30. उत्तराध्ययन 36.95-96, प्रज्ञापना (1.38-54) में वनस्पति के 12 वर्ग किये गये हैं। 31. उत्तराध्ययन 36.101-109, मूलाचार (गाथा 211) में अग्नि के 6 भेद बताये गये हैं। 32. बायराजे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया। उक्कलिया मंडलिया, घणगुंजा सुद्धवाया य।- उत्तराध्ययन, 36.118 33. भुवनेश मुनि (डॉ.) जैन आगमों के आचार दर्शन और पर्यावरण संरक्षण का मूल्यांकन', पृ. 190 34. जयंचरे जयं चिट्टे, जयमासे, जयं सये। जयंभुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई।- दशवैकालिक सूत्र, 4.62 35. बेइंदिया तेइंदिया, चउरो, पंचिंदिया चेव।-उत्तराध्ययन, 36.126
उत्तराध्ययन, 36.172-173 37. उत्तराध्ययन, 36.180 38. उत्तराध्ययन, 36.181-182 39. उत्तराध्ययन 36.188, डॉ. सुदर्शन लाल जैन ने 'उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन' में जीव के इन भेदों और प्रभेदों
का विशेष विवेचन किया है। 40. दशवैकालिक-सूत्र 4.16, उत्तराध्ययन-सूत्र अध्ययन 19, मूलाचार 112-113 41. उत्तराध्ययन सूत्र, 17.16 42. चारित्रपाहुड, 22 43. आचारसार, 5.70 44. सूत्रकृतांग सूत्र, छठा अध्ययन 45. दशाश्रुतस्कंध, दशा 6 46. समंतभद्रकृत श्रावकाचार, वसुनन्दी श्रावकाचार आदि।
-इण्टरनेशनल लॉ सेण्टर, 61-63, डॉ. राधाकृष्णन मार्ग, मैलापुर, चेन्नई-600004
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