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|| 10 जनवरी 2011 | जिनवाणी
|191 शिष्टता के साथ भाव प्रकट करना ये सब वचन शुद्धि के सहायक कारण हैं। ज्यादा कार्य करने वाला हमेशा कम बोलने वाला ही होगा। आप भी परिमित एवं हितकारी सुभाषित वचनों का आश्रय लेकर दाक्षिण्य भावी बनें, ऐसी मंगल भावना है। (3) कायशुद्धि- कायशुद्धि से तात्पर्य शारीरिक शुद्धि से नहीं, अपितु कायिक संयम से है। आसन विजय, दृष्टि विजय और मन विजय- ये तीनों प्रकार की साधनाएँ सामायिक में आवश्यक हैं। सामायिक में उचित व स्थिर आसन से बैठने से एकाग्रता का वर्धन होता है। उठने-बैठने, खड़े होने व हाथ पैर को अनावश्यक हिलाने-डुलाने जैसी प्रवृत्ति सामायिक के समय में नहीं हो। इसके लिए काया के 12 दोषों को टालने का खयाल रखना अपेक्षित है। बाह्य आचरण ही आन्तरिक शुद्धि का दर्पण है। स्थानांगसूत्र के तृतीय ठाणा में प्रभु ने स्पष्ट कहा है-“मणसुप्पणिहाणे, वयसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे"- हर मनुष्य के पास मन-वचन और काया के सुप्रणिधान की तीन निधियाँ हैं- जो नवनिधियों की दाता हैं। फिर भी मानव अपनी क्षमता पर विश्वास नहीं कर रहा। तन योग से, मनोयोग से और वाणी योग से सामायिक की साधना की जाए तो अनन्त-अनन्त कर्म समाप्त हो सकते हैं। आप सब मात्र सुनकर ही नहीं रह जाएं, अपितु कुछ कर सकने का, आगे बढ़ने का भी संकल्प करें। सामायिक की साधना का चरम एवं परम लक्ष्य रखें। इससे मन भी अदण्ड बन जायेगा। वचन भी अदण्ड बन जायेगा और काया भी अदण्ड बन जायेगी।
सामायिक का मूल लक्ष्य विषय कषाय घटाकर समभाव की प्राप्ति है। ज्ञान पूर्वक समता भाव किसी वेश, क्षेत्र और समय में आ सकते हैं। यथा-भरत चक्रवर्ती को अनित्य भावना से आरिसा भवन में केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इलायची कुमार को डोरी पर नाचते विकार भाव नष्ट होकर समता स्वभाव की प्राप्ति हो गई। घाणी पीले जाते हुए भी द्वेष-क्रोध का दावानल लगाने की बजाय पूर्ण समभाव की प्राप्ति हो गई। तात्पर्य यह है कि विशिष्ट भाव वाले साधकों के लिये द्रव्य, क्षेत्र और काल की बाहरी शुद्धि आवश्यक नहीं है। लेकिन सामान्य साधकों के लिये समता भाव की प्राप्ति हेतु भाव शुद्धि के लिये ही द्रव्य-क्षेत्र-काल की शुद्धि आवश्यक मानी गई है। कारण कि हर व्यक्ति स्थूलिभद्र की तरह वेश्या के आकर्षक आंगन रूप क्षेत्र, षट्रस भोजन रूप द्रव्य के मिलने पर शील रूप स्वभाव में स्थिर नहीं रह सकता है। उन्होंने समभाव की पूर्णता को, उसके शिखर को पा लिया था। यदि समभाव की प्राप्ति नहीं हुई हो तो व्यक्ति कितना ही तीव्र तप करे, जप करे, कितनी ही क्रिया पाले, मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। सामायिक के बिना न कभी मोक्ष हुआ है, न वर्तमान में हो रहा है और नही भविष्य में होगा।
__ आप तो मन बदलने के लिये, कषायों को जीतने के लिये सामायिक साधना में रत रहने का अभीष्ट लक्ष्य रखिये। एक दिन मंजिल तक पहुँचने में अवश्य समर्थ होंगे....इन्हीं मंगल भावों के साथ।
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