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________________ 149 | 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी ऐसा न होगा जिसके पास मोबाइल नहीं है। मोबाइल होना बुरा नहीं है, पर वे उसका आवश्यकतानुसार प्रयोग नहीं करते हैं। घंटों-घंटों मित्रों और सहेलियों से बातें करने में पैसा और समय दोनों का अपव्यय हो रहा है। सह-शिक्षा से भी समाज में विसंगतियाँ आई हैं। युवा वर्ग अपनी इच्छा से बिना सोचे समझे आपस में विवाह सम्बन्ध बांध लेते हैं। अधिकतर ऐसे सम्बन्ध टूटते देखे गए हैं। भोजन की सात्त्विकता में घुन लग गया है। सब मंगल कार्य होटलों में होते हैं। घर का आंगन मुँह ताकता है। रोटी-साग अच्छे नहीं लगते हैं। बाहर के व्यजनों ने पैर पसार लिए हैं। बाहर के भोजन में न जाने ऐसी सामग्रियाँ काम लेते हैं जिससे मोटापा बढ़ जाता है। केक का चलन भी अधिक बढ़ गया है जिसमें अधिकतर अण्डे डाले जाते हैं। यह हमारा खान-पान नहीं है। राजस्थानी कहावत है-"जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन"। दिनों-दिन युवा पीढ़ी गर्त में जा रही है। गुटखा, मद्य-पान एवं अन्य नशीली वस्तुओं का प्रेत लग गया है। इन नशीली वस्तुओं से कैंसर, रक्त-चाप आदि बीमारियाँ लग जाती हैं, धीरे-धीरे शरीर निढाल सा होता जाता है। यह प्रेत तो आध्यात्मिक गुरु ही निकाल सकते हैं। ____ आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का सन्देश है-“व्यसन मुक्त हो सारा देश" समय से छूता हुआ नारा है और अनेक युवाओं ने इस नारे से लाभ उठाया है। विज्ञान का युग है। भौतिकवाद बढ़ गया है। बच्चे हों या युवा पीढ़ी, टी.वी. देखने में अपने जीवन का अधिक समय नष्ट कर देते हैं। कोई ऐसा सीरियल न होगा जिसमें मार-धाड़ और बन्दूकें न चली हों। इसी कारण आजकल आत्म-हत्याएँ और हत्याओं ने उग्र रूप धारण कर लिया है। युवा पीढ़ी स्वार्थ में डूब रही है, कर्त्तव्य विमूढ़ हो रही है। आदर्शवाद, यथार्थवाद और समाजवाद सब दब गए। स्वार्थवाद, हमवाद और अहंवाद में पड़ गए। इस समय राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त की अति सुन्दर पंक्तियाँ याद आती हैं "हम कौन थे? क्या हो गए, क्या होंगे अभी, आओ. विचारें आज मिलकर ये समस्या समी" "वे धर्म पर करते निछावर, तृण समान शरीर थे।" आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. आध्यात्मिक गुरु थे। उनकी माताजी रूपादेवी जी ने पिता के न रहने पर पुत्र को ऐसी आध्यात्मिक शिक्षा दी जिससे जैन समाज और विश्व समाज दैदीप्यमान हैं। ऐसे सन्त विरले ही होते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की मां पुतली बाई उनकी प्रथम गुरु थी। गांधी जी के विलायत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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