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________________ 132 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 स्नान कहा है। शरीर का मैल 'जल के स्नान से दूर जाता है, किन्तु मानसिक विकारों का प्रक्षालन तो गुरु-उपदेश रूपी जल से ही हो सकता है। जल को अमृत के समान माना गया है- 'जलम् अमृतम्', किन्तु गुरुवाणी तो इस अमृत जल से भी अधिक प्रभावशाली है। जल जीवन है, किन्तु गुरुवाणी जीवन का मार्ग है । गुरु-शिक्षा से मनुष्य जरारहित वृद्धत्व को प्राप्त होता है । तात्पर्य यह है कि वृद्धावस्था में केशों का श्वेत होना आदि शारीरिक विकार हैं, किन्तु गुरु के उपदेश से मनुष्य तरुण अवस्था में ही ज्ञान का सागर बन जाता है और वृद्धजनों के समान ही सम्मान को प्राप्त होता है। बिना किसी शारीरिक विकृति के ही वह अधिक उम्र के लोगों द्वारा अर्जित अनुभवों के समान ज्ञाननिधि बन जाता है । वृद्धावस्था अनुभवों और ज्ञान का सञ्चय है । यह सञ्चय मनुष्य गुरु की कृपा से युवावस्था में प्राप्त कर लेता है। महर्षि मनु का यह वचन ध्यातव्य है न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः । यो वै युवाऽप्यधीयानस्तं देवा स्थविरं विदुः ॥ अर्थात् बाल सफेद हो जाने से व्यक्ति वृद्ध (बड़ा) नहीं माना जाता है, अपितु युवा व्यक्ति भी यदि ज्ञानी है तो वह बड़ा माना गया है। निष्कर्षतः ज्ञानवृद्ध वयोवृद्ध से श्रेष्ठ होता है । यही सारांश धम्मपद के इस अंश में भी द्रष्टव्य है न तेन थेरो होति येनस्स पलितं सिरो। परिपक्को वयो तस्स मोघजिण्णो ति बुच्चति ॥ (धम्मपद 19.5) सिर के बाल पकने से कोई स्थविर नहीं होता, केवल उसकी आयु परिपक्व हो गई है, वह तो तुच्छ वृद्ध कहा जाता है। महाकवि कालिदास ने भी कहा है कि ज्ञानवृद्ध लोगों के विषय में आयु समीक्षा का विषय नहीं होती । ज्ञान में ज्येष्ठ होने पर आयु की ज्येष्ठता का कोई महत्त्व नहीं होता है- 'न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते' $39 यह गुरूपदेश चर्बी रहित गुरुता (गौरव) प्रदान करता है और स्वर्णनिर्मित नहीं होते हुए भी यह अतिसुन्दर कर्णाभरण है, क्योंकि सद्वचनों को सुनने से ही कानों की शोभा मानी जाती है। गुरु का उपदेश प्रदोषकालीन चन्द्रमा के समान है जो अत्यन्त मलिन दोषों के अन्धकार को भी दूर कर देता है । वृद्धत्व जिस प्रकार केशों को निर्मल करता हुआ श्वेत कर देता है उसी प्रकार गुरु की शिक्षा भी दोषों को निर्मल करती हुई गुणों में परिणत कर देती है । शुकनासोपदेश में गुरुवचन को 'प्रकाश' की सञ्ज्ञा दी गई है।" यह ऐसा प्रकाश है जो प्रकाश के स्रोत सूर्य और शीतल आनन्द किरण चन्द्रादि ज्योतियों से भी बढ़कर है। संसार की प्रत्येक वस्तु का ज्ञान इन ज्योतिपुञ्जों से सम्भव है, किन्तु अज्ञान के अन्धकार में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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