SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.. आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. हमेशा सामायिक-स्वाध्याय की प्रेरणा देते रहते थे। आप कहा करते थे-यदि आपको किसी को प्रेरणा देनी है तो स्वयं वैसा आचरण करो। दूसरे आपके आचरण को देखकर स्वयं शिक्षा लेंगे। आप हमेशा सामायिक-स्वाध्याय में निरत रहते थे। प्रत्येक भाई-बहिन को उनकी क्षमतानुसार अपनी-अपनी साधना पद्धतियों से नियमित साधना का संकल्प कराते थे । दुर्व्यसनी व्यक्तियों को व्यसन-मुक्त होने की प्रेरणा देते रहते थे । स्वयं भी अहर्निश जाग्रत होकर अप्रमत्त भाव से स्वाध्याय में रत रहते थे। आपके जीवन को देखकर ही प्रत्येक व्यक्ति, जो भी दर्शन करने आता, सामायिक-स्वाध्याय का नियम अवश्य लेता था। उसी का प्रभाव है कि अधिकांश घरों में सामायिक-स्वाध्याय नियमित होता है। आप कहा करते थे कि जिस प्रकार शरीर-पुष्टि के लिये व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मस्तिष्क के विकास के लिए स्वाध्याय आवश्यक है। आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा० परोपकारी सन्त थे। आप हमेशा दूसरों के हित में सोचा करते थे। कभी-कभी तो दूसरों के दुःख को दूर करने के लिये स्वयं दुःख प्रोढ लेते थे किन्तु दूसरों को महसूस नहीं होने देते थे। मैंने अपने एक मित्र से सुना कि एक बार एक व्यक्ति बहुत दुःखी था । वह आपकी शरण में आया। प्राचार्य श्री ने उसके दुःख को दूर करने के लिये स्वयं को दुःख में डाल दिया । आप हमेशा समाज की नव पीढ़ी के बारे में फरमाया करते थे कि अगर इसे सच्चा मार्ग-दर्शन नहीं मिला तो यह भटक जावेगी। आपकी प्रेरणा से ही जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान जयपुर, स्वाध्याय विद्यापीठ, जलगांव आदि शैक्षणिक संस्थाएँ खुलीं। आपकी प्रेरणा से सच्चा मार्गदर्शन पाकर वहाँ से निकले हुए विद्यार्थी आज विविध क्षेत्रों में समाज व राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। __ आचार्य श्री धैर्यवान थे । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं छोड़ते थे। एक घटना स्व. पं. शशिकान्तजी झा की डायरी से उद्धृत है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। पाकिस्तानी वायुयान बम गिरा रहे थे। चारों ओर आतंक मचा रखा था। उस समय पूज्य आचार्य श्री का बालोतरा में चातुर्मास था। टैकों के सामान से लदी लारियों और युद्धोपयोगी उपकरणों से बालोतरा संग्राम-स्थल की तरह दिखाई देता था। प्राचार्य श्री के भक्तों की राय थी कि आचार्य श्री इस आपातकाल में बालोतरा को छोड़कर अन्यत्र चले जावें । मगर आचार्य श्री ने धैर्यपूर्वक विश्वास बंधाया कि मृत्यु अवश्यम्भावी है। आनी होगी तो वहाँ भी आ जावेगी और आचार्य श्री वहीं रहे, धैर्य नहीं छोड़ा । बड़ी विकट परिस्थितियाँ थीं । ऐसा लग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy