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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
इस प्रकार पूज्य श्री 'अप्पा चेव दमेयव्वो' के आदर्श को चरितार्थ करते हुए चिन्मय की स्थिति में तम्मय हुए । धन्य है आचार्य देव को, जिन्होंने यावत्जीवन स्वाध्याय में रत रहते हुए शरीर सापेक्ष स्व के अध्याय को परम समाधि में विलीन करके जन-जन को स्वाध्याय का अपूर्व अन्तिम सन्देश दिया । आचार्य भगवन् पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. की यह यात्रा जीवन का अन्त नहीं था, पूज्य गुरुदेव का यह संथारा जीवन का समापन नहीं बल्कि अन्तर की निधियों का उद्घाटन था ।
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- गिड़िया भवन, A-35 धर्मनारायणजी का हत्था, पावटा, जोधपुर (राज.)
अमृत-करण
शान्ति और समता के लिए न्याय-नीतिपूर्वक धर्म का आचरण ही श्रेयस्कर है ।
ज्ञान-दर्शन आदि निज गुण ही आत्म-धन है ।
इच्छा पर जितना ही साधक का नियन्त्रण होगा उतना ही उसका व्रत दीप्तिमान होगा | इच्छा की लम्बी-चौड़ी बाढ़ पर यदि नियन्त्रण नहीं किया गया तो उसके प्रसार में ज्ञान, विवेक आदि सद्गुण प्रवाह-पतित तिनके की तरह बह जायेंगे ।
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- प्राचार्य श्री हस्ती
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